________________ चतुर्थ स्थान-चतुर्थ उद्देश [ 426 उपसर्ग' का उल्लेख है, जो बिजली गिरने-उल्कापात, भूकम्प, भित्ति-पतन आदि जनित पीड़ाएं होती हैं, उनको अचेतनकृत उपसर्ग कहा गया है।' ५६८-दिव्वा उवसग्गा चउविहा पण्णत्ता, त जहा-हासा, पानोसा, वीमंसा, पुढोवेमाता। दिव्य उपसर्ग चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. हास्य-जनित-कुतूहल-वश हँसी से किया गया उपसर्ग / 2. प्रदुष-जनित-पूर्व भव के वैर से किया गया उपसर्ग / 3. विमर्श-जनित-परीक्षा लेने के लिए किया गया उपसर्ग / 4. पृथग्-विमात्र--हास्य, प्रद्वेषादि अनेक मिले-जुले कारणों से किया गया उपसर्ग (568) / ५६६-माणुसा उवसग्गा चउन्विहा पण्णत्ता, त जहा-हासा, पानोसा, वीमंसा, कुसोलपडिसेवणया। मानुष उपसर्ग चार प्रकार का कहा गया है / जैसे-- 1. हास्य-जनित उपसर्ग, 2. प्रदुष-जनित उपसर्ग, 3. विमर्श-जनित उपसर्ग, 4. कुशील प्रतिसेवन के लिए किया गया उपसर्ग (566) / ६००--तिरिक्खजोणिया उवसग्गा चउबिहा पण्णता, तं जहा-भया, पदोसा, आहारहे अवच्चलेण-सारक्खणया / तिर्यंचों के द्वारा किया जाने उपसर्ग चार प्रकार का कहा गया है / जैसे१. भय-जनित उपसर्ग, 2. प्रद्वेष-जनित उपसर्ग, 3. आहार के लिए किया गया उपसर्ग / 4. अपने बच्चों के एवं ग्रावास-स्थान के संरक्षणार्थ किया गया उपसर्ग ६०१--प्रायसंचेयणिज्जा उवसग्गा चउविहा पण्णत्ता, त जहा—घट्टणता, पवडणता, थंभणता, लेसणता। आत्मसंचेतनीय उपसर्ग चार प्रकार का कहा गया है। जैसे१. घट्टनता-जनित-अांख में रज-कण चले जाने पर उसे मलने से होने वाला कष्ट / 2. प्रपतन-जनित—मार्ग में चलते हुए असावधानी से गिर पड़ने का कष्ट / 3. स्तम्भन-जनित-हस्त-पाद आदि के शुन्य हो जाने से उत्पन्न हुआ कष्ट / 4. श्लेषणता-जनित-सन्धिस्थलों के जुड़ जाने से होने वाला कष्ट (601) / 1. जे केई उवसम्गा देव-माणुस-तिरिक्खऽचेदणिया / (मा० 7, 158 पूर्वार्ध) टीका-ये केचनोपसर्गा देव-मनुष्य-तिर्यक-कृता; अचेतना विद्य दश-न्यादयस्तान् सर्वान् अध्यासे / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org