________________ 404 [ स्थानाङ्गसूत्र माना जाता है, उसी प्रकार जो प्राचार्य केवल षट्काय-प्रज्ञापक गाथादिरूप अल्पसूत्र का धारक और विशिष्ट क्रियाओं से रहित होता है, वह प्राचार्य श्वपाक-करण्डक के समान है। 2. जैसे वेश्या का करण्डक लाख भरे सोने के दिखाऊ आभूषणों से भरा होता है, वह श्वपाक-करण्डक से अच्छा है, वैसे ही जो प्राचार्य अल्पश्र त होने पर भी अपने वचनचातुर्य से मुग्धजनों को आकर्षित करते हैं, उनको वेश्या-करण्डक के समान कहा गया है। ऐसा आचार्य श्वपाक-करण्डक-समान प्राचार्य से अच्छा है। 3. जैसे किसी गृहपति या सम्पन्न गृहस्थ का करण्डक सोने-मोती आदि के आभूषणों से भरा रहता है, वैसे हो जो आचार्य स्व-समय पर-समय के ज्ञाता और चारित्रसम्पन्न होते हैं, उन्हे गृहपति-करण्डक के समान कहा गया है।। 4. जैसे राजा का करण्डक मणि-माणिक आदि बहुमूल्य रत्नों से भरा होता है, उसी प्रकार जो प्राचार्य अपने पद के योग्य सर्वगुणों से सम्पन्न होते हैं, उन्हें राज-करण्डक के समान कहा गया है। उक्त चारों प्रकार के करण्डकों के समान चारों प्रकार के प्राचार्य क्रमशः असार, अल्पसार, सारवान् और सर्वश्रेष्ठ सारवान् जानना चाहिए। ५४२---चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता, तजहा-साले जामगेमे सालपरियाए, साले णाममेगे एरंडपरियाए, एरंडे णाममेगे सालपरियाए, एरंडे णाममेगे एरंडपरियाए / एवामेव चत्तारि प्रायरिया पण्णता, त जहा-साले णाममेगे सालपरियाए, साले णाममेगे एरंडपरियाए, एरंडे गाममेगे सालपरियाए, एरंडे णाममेगे एरंडपरियाए / चार प्रकार के वृक्ष कहे गये हैं / जैसे-- 1. शाल और शाल-पर्याय--कोई वृक्ष शाल जाति का होता है और शाल-पर्याय (विशाल __ छाया वाला, प्राश्रयणीयता आदि धर्मों वाला) होता है। 2. शाल और एरण्ड-पर्याय--कोई वृक्ष शाल जाति का होता है, किन्तु एरण्ड-पर्याय (एरण्ड ___ के वृक्ष-समान अल्प छाया वाला) होता है। 3. एरण्ड और शाल-पर्याय--कोई वृक्ष एरण्ड के समान छोटा, किन्तु शाल के समान विशाल छाया वाला होता है। 4. एरण्ड और एरण्ड-पर्याय--कोई वृक्ष एरण्ड के समान छोटा और उसी के समान अल्प छाया वाला होता है। इसी प्रकार आचार्य भी चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. शाल और शालपर्याय-कोई प्राचार्य शाल के समान उत्तम जाति वाले और उसी के समान धर्म वाले-ज्ञान, प्राचार और प्रभावशाली होते हैं। 2. शाल और एरण्डपर्याय-कोई प्राचार्य शाल के समान उत्तम जाति वाले, किन्तु ज्ञान, आचार और प्रभाव से रहित होते हैं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org