________________ चतुर्थ स्थान-चतुर्थ उद्देश ] [ 411 कृश-अकृश-सूत्र ५५४---चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता. तं जहा-णिक्कट्ठ णाममेगे णिक्कट्ठ, णिक्क? णाममेगे अणिक्कट्ठ, प्रणिक्कट्ठ णाममेगे णिक्क?', अणिक्क₹ णामभेगे प्रणिक्कट्ठ / पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. निष्कृष्ट और निष्कृष्ट-कोई पुरुष शरीर से कृश होता है और कषाय से भी कृश होता है। 2. निष्कृष्ट और अनिष्कृष्ट-को पुरुष शरीर से कृश होता है, किन्तु कषाय से कृश नहीं होता। 3. अनिष्कृष्ट प्रौर निष्कृष्ट-कोई पुरुष शरीर से कृश नहीं होता, किन्तु कषाय से कृश होता है। 4. अनिष्कृष्ट और अनिष्कृष्ट-कोई पुरुष न शरीर से कृश होता है और न कषाय से ही कृश होता है (554) / ५५५–चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, त जहा—णिक्कट्ठ णाममेगे णिक्कटप्पा, णिक्क? णाममेगे अणिक्कट्टप्पा, अणिक्क? णाममेगे णिक्कटप्पा, अणिक्कट्ठ गाममेगे अणिक्कटुप्पा / पुन: पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. निष्कृष्ट प्रौर निष्कृष्टात्मा-कोई पुरुष शरीर से कृश होता है और कषायों का निर्मथन __कर देने से निर्मल-आत्मा होता है। 2. निष्कृष्ट और अनिष्कृष्टात्मा-कोई पुरुष शरीर से तो कृश होता है, किन्तु कषायों की प्रबलता से अनिर्मल-आत्मा होता है। 3. अनिष्कृष्ट और निष्कृष्टात्मा-कोई पुरुष शरीर से अकृश (स्थूल) किन्तु कषायों के अभाव से निर्मल-आत्मा होता है।। 4. अनिष्कृष्ट और अनिष्कृष्टात्मा-कोई पुरुष शरीर से अनिष्कृष्ट (अकृश) होता है और आत्मा से भी अनिष्कृष्ट (अकृश या अनिर्मल) होता है (555) / बुध-अबुध-सूत्र ५५६-चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, त जहा-बुहे णाममेगे बुहे, णाममेगे अबुहे, अबुहे णाममेगे बुहे, अबुहे णाममेगे प्रबुहे / पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. बुध और बुध---कोई पुरुष ज्ञान से भी बुध (विवेकी) होता है और आचरण से भी बुध (विवेकी) होता है। 2. बुध और अबुध-कोई पुरुष ज्ञान से तो बुध होता है, किन्तु पाचरण से अबुध (अविवेकी) होता है। 3. अबुध और बुध-कोई पुरुष ज्ञान से अबुध होता है, किन्तु आचरण से बुध होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org