________________ 412] [स्थानाङ्गसूत्र 4. अबुध और अबुध-कोई पुरुष ज्ञान से भी अबुध होता है और आचरण से भी अवुध होता है (556) / ५५७-चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, त जहा–बुधे णाममेगे बुहियए, बुधे णाममेग अबुधहियए, अबुधे गाममेग बुहियए, अबुधे णाममेगे अबुधहियए / पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. बुध और बुधहृदय---कोई पुरुष आचरण से बुध (सत्-क्रिया वाला) होता है और हृदय से भी बुध (विवेकशील) होता है। 2. बुध और अबुधहृदय-कोई पुरुष आचरण से बुध होता है, किन्तु हृदय से अबुध (अविवेकी) होता है। 3. अबुध और बुधहृदय-कोई पुरुष आचरण से अबुध होता है, किन्तु हृदय से वुध होता है। 4. अबुध और अबुधहृदय--कोई पुरुष प्राचरण से भी अबुध होता है और हृदय से भी अबुध होता है (557) / अनुकम्पक-सूत्र - ५५८–चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, त जहा-पायाणुकंपए णाममेगे णो पराणुकंपए, पराणुकंपए णाममेग भो प्रायाणुकंपए, एगे प्रायाणुकंपएवि पराणुकंपएवि, एगे णो पायाणुकंपए णो पराणुकंपए। पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. आत्मानुकम्पक, न परानुकम्पक-कोई पुरुष अपनी आत्मा पर अनुकम्पा (दया) करता है, किन्तु दूसरे पर अनुकम्पा नहीं करता। (जिनकल्पी, प्रत्येकबुद्ध या निर्दय कोई अन्य पुरुष) 2. परानुकम्पक, न अात्मानुकम्पककोई पुरुष दूसरे पर तो अनुकम्पा करता है, किन्तु __ मेतार्य मुनि के समान अपने ऊपर अनुकम्पा नहीं करता। 3. आत्मानुकम्पक भी, परानुकम्पक भी-कोई पुरुष प्रात्मानुकम्पक भी होता है और परानुकम्पक भी होता है, (स्थविरकल्पी साधु)। 4. न आत्मानुकम्पक, न परानुकम्पक-कोई पुरुष न प्रात्मानुकम्पक ही होता है और न परानुकम्पक ही होता है / (कालशौकरिक के समान) (558) / संवास-सूत्र ५५६-चउबिहे संवासे पण्णत्ते, त जहा--दिवे, प्रासुरे, रक्खसे, माणुसे / संवास (स्त्री-पुरुष का सहवास) चार प्रकार का कहा गया है / जैसे१. दिव्य-संवास, 2. प्रासुर-संवास, 3. राक्षस-संवास, 4. मानुष-संवास (556) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org