________________ 422 ] [ स्थानाङ्गसूत्र इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. उत्तान और उत्तानहृदय-कोई पुरुष अनुदार या उथला होता है और उसका हृदय भी अनुदार या उथला होता है / 2. उत्तान और गम्भीरहृदय—कोई पुरुष अनुदार या उथला होता है, किन्तु उसका हृदय गम्भीर या उदार होता है। 3. गम्भीर और उत्तानहृदय-कोई पुरुष गम्भीर किन्तु अनुदार या उथले हृदय वाला होता है। 4. गम्भीर और गम्भीरहृदय-कोई पुरुष गम्भीर और गम्भीरहृदय वाला होता ५८७-चत्तारि उदही पण्णत्ता, त जहा- उत्ताणे णाममेगे उत्ताणोमासी, उत्ताणे णाममेगे गभीरोभासी, गभीरे णाममेगे उत्ताणोभासी, गभीरे णाममेगे गंभीरोभासी। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--उत्ताणे णाममेग उत्ताणोभासी, उत्ताणे णाममेग गभीरोभासी, गभीरे णामोंगे उत्ताणोभासी, गभीरे णाममेगे गभीरोभासी। पुनः समुद्र चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. उत्तान और उत्तानावभासी—कोई समुद्र उथला होता है और उथला ही प्रतिभासित होता है। 22. उत्तान और गम्भीरावभासी- कोई समुद्र उथला होता है, किन्तु गहरा प्रतिभासित होता है। 3. गम्भीर और उत्तानावभासी-कोई समुद्र गम्भीर होता है किन्तु उथला प्रतिभासित ___होता है। 4. गम्भीर और गम्भीरावभासी-कोई समुद्र गम्भीर होता है और गम्भीर ही प्रतिभासित होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. उत्तान और उत्तानावभासी—कोई पुरुष उथला होता है और उथला ही प्रतिभासित होता है। 2. उत्तान और गम्भीरावभासी--कोई पुरुष उथला होता है, किन्तु गम्भीर प्रतिभामित होता है। 3. गम्भीर और उत्तानावभासी-कोई पुरुष गम्भीर होता है, किन्तु उथला प्रतिभासित होता है। 4. गम्भीर और गम्भीरावभासी-कोई पुरुष गम्भीर होता है और गम्भीर ही प्रतिभासित होता है (587) / तरक-सूत्र ५८८--चत्तारि तरगा पण्णत्ता, त जहा–समुदं तरामीतेगे समुदं तरति, समुदं तरामीतेगे गोप्पयं तरति, गोप्पयं तरामोतेग समुह तरति, गोप्पयं तरामोतेगे गोप्पयं तरति / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org