________________ 420 ] [ स्थानाङ्गसूत्र काम-सूत्र ५८३-चउम्विहा कामा पण्णत्ता, त जहा-सिंगारा, कलुणा, बीभच्छा, रोद्दा / सिंगारा कामा देवाणं, कलुणा कामा मणुयाणं, बीभच्छा कामा तिरिक्खजोणियाणं, रोद्दा कामा गेरइयाणं / काम-भोग चार प्रकार का कहा गया है। जैसे१. शृगार काम, 2. करुण काम, 3. बीभत्स काम, 4. रौद्र काम / 1. देवों का काम शृगार-रस-प्रधान होता है। 2. मनुष्यों का काम करुण-रस-प्रधान होता है। 3. तिर्यग्योनिक जीवों का काम बीभत्स-रस-प्रधान होता है / 4. नारक जीवों का काम रौद्र-रस-प्रधान होता है (583) / उत्ताण-गंभीर-सूत्र ५८४–चत्तारि उदगा पण्णत्ता, तंजहा-उत्ताणे णाममेगे उत्ताणोदए, उत्ताणे णाममेगे गंभीरोदए, गंभीरे णामोंगे उत्ताणोदए, गंभीरे गाममेगे गंभीरोदए / एवामेव चत्ताणि पुरिसजाया पण्णत्ता, त जहा-उत्ताणे गाममेगे उत्ताणहिदए, उत्ताणे णाममेगे गंभीरहिदए, गंभोरे गाममेग उत्ताणहिदए, गंभोरे गाममेगे गंभीरहिदए / उदक (जल) चार प्रकार का कहा गया है / जैसे१. उत्तान और उत्तानोदक-कोई जल छिछला-अल्प किन्तु स्वच्छ होता है उसका भीतरी भाग दिखाई देता है। 2. उत्तान और गम्भीरोदक-कोई जल अल्प किन्तु गम्भीर (गहरा) होता है अर्थात् मलीन होने से इसका भीतरी भाग दिखाई नहीं देता। 3. गम्भीर और उत्तानोदक-कोई जल गम्भीर (गहरा) किन्तु स्वच्छ होता है। 4. गम्भीर और गम्भीरोदककोई जल गम्भीर और मलिन होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे---- 1. उत्तान और उत्तानहृदय-कोई पुरुष बाहर से भी अगम्भीर (उथला या तुच्छ) दिखता है और हृदय से भी अगम्भीर (उथला या तुच्छ) होता है / 2. उत्तान और गम्भीरहृदय-कोई पुरुष बाहर से अगम्भीर दिखता है, किन्तु भीतर से ___ गम्भीर हृदय होता है / 3. गम्भीर और उत्तानहृदय-कोई पुरुष बाहर से गम्भीर दिखता है, किन्तु भीतर से अगम्भीर हृदय वाला होता है 4. गम्भीर और गम्भीरहृदय--कोई पुरुष बाहर से भी गम्भीर होता है और भीतर से ___ भी गंभीर हृदय वाला होता है (584) / ५८५-~-चत्तारि उदगा पण्णत्ता, त जहा-उत्ताणे गाममेगे उत्ताणोमासी, उत्ताणे गाममेगे गंभीरोभासी, गंभीरे णाममेगे उत्ताणोभासी, गंभीरे णाममेगे गंभीरोभासी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org