________________ 410] [ स्थानाङ्गसूत्र विवेचन-चर्म पक्षी और रोम पक्षी तो मनुष्य क्षेत्र में पाये जाते हैं, किन्तु समुद्ग पक्षी और विततपक्षी मनुष्यक्षेत्र से बाहरी द्वीपों और समुद्रों में ही पाये जाते हैं / ५५२-चउम्विहा खुड्डपाणा पण्णता, तं जहा–बेइंदिया, तेइंदिया, चरिदिया, संमुच्छिमपंचिदियतिरिक्खजोणिया। क्षुद्र प्राणी चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. द्वीन्द्रिय जीव, 2. त्रीन्द्रिय जीव, 3. चतुरिन्द्रिय जीव, 4. सम्मूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव (552) / विवेचन--जिनकी अग्रिम भव में मुक्ति संभव नहीं, ऐसे प्राणी क्षुद्र कहलाते हैं। मिक्षक-सूत्र ५५३–चत्तारि पक्खी पण्णता, त जहा-णिवतित्ता जाममेगे णो परिवइत्ता, परिवइत्ता णाममेगे जो णिवतित्ता, एगे णिवतित्तावि परिवइत्तावि, एगे णों णिवतित्ता णो परिवइत्ता। एवामेव चत्तारि मिक्खागा पण्णत्ता, त जहा-णिवतित्ता णाममेगे जो परिवइत्ता, परिवइत्ता णाममेगे जो णिवतित्ता, एगे णिवतित्तावि परिवइत्तावि, एगे जो णिवतित्ता णो परिवइत्ता। पक्षी चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. निपतिता, न परिवजिता–कोई पक्षी अपने घोंसले से नीचे उतर सकता है, किन्तु (बच्चा होने से) उड़ नहीं सकता। 2. परिव्रजिता, न निपतिता-कोई पक्षी अपने घोंसले से उड़ सकता है, किन्तु (भीरु होने से) नीचे नहीं उतर सकता। 3. निपतिता भी, परिव्रजिता भी-कोई समर्थ पक्षी अपने घोंसले से नीचे भी उड सकता है ___ और ऊपर भी उड़ सकता है। 4. न निपतिता, न परिवजिता-कोई पक्षी (अतीव बालावस्था वाला होने के कारण) अपने घोंसले से न नीचे ही उतर सकता है और न ऊपर ही उड़ सकता है (553) / इसी प्रकार भिक्षुक भी चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. निपतिता, न परिव्रजिता—कोई भिक्षुक भिक्षा के लिए निकलता है, किन्तु रुग्ण होने आदि के कारण अधिक घम नहीं सकता। 2. परिवजिता, न निपतिता-कोई भिक्षुक भिक्षा के लिए घूम सकता है, किन्तु स्वाध्यायादि में संलग्न रहने से भिक्षा के लिए निकल नहीं सकता। 3. निपतिता भी, परिव्रजिता भी---कोई समर्थ भिक्षुक भिक्षा के लिए निकलता भी है और घूमता भी है। 4. न निपतिता, न परिवजिता--कोई नवदीक्षित अल्पवयस्क भिक्षुक भिक्षा के लिए न निकलता है और न घूमता ही है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org