________________ 406] [ स्थानाङ्गसूत्र 2. जिस प्रकार शाल नाम का वृक्ष एरण्ड वृक्षों के मध्य में वृक्षराज होता है, उसी प्रकार उत्तम आचार्य मंगुल (अधम-असुन्दर) शिष्यों के परिवार वाला जानना चाहिए / 3. जिस प्रकार एरण्ड नाम का वृक्ष शाल वृक्षों के मध्य में वृक्षराज होता है, उसी प्रकार सुन्दर शिष्यों के परिवार वाला मंगुल आचार्य जानना चाहिए। 4. जिस प्रकार एरण्ड नाम का वृक्ष एरण्ड वृक्षों के मध्य में वृक्षराज होता है, उसी प्रकार ___ मंगुल शिष्यों के परिवार वाला मंगुल आचार्य जानना चाहिए (543) / मिक्षाक-सूत्र ५४४-चत्तारि मच्छा पण्णत्ता, तं जहा ---अणुसोयचारी, पडिसोयचारी, अंतचारी, मझचारी। एवामेव चत्तारि भिक्खागा पण्णत्ता, तं जहा–अणुसोयचारी, पडिसोयचारी, अंतचारी, मज्झचारी। मत्स्य चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. अनुस्रोतचारी-जल-प्रवाह के अनुकूल चलने वाला मत्स्य / 2. प्रतिस्रोतवारी-जल-प्रवाह के प्रतिकल चलने वाला मत्स्य / 3. अन्तचारी-जल-प्रवाह के किनारे-किनारे चलने वाला मत्स्य / 4. मध्यचारी-जल-प्रवाह के मध्य में चलने वाला मत्स्य / इसी प्रकार भिक्षुक भी चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. अनुस्रोतचारी-उपाश्रय से लगाकर सोधी गली में स्थित घरों से भिक्षा लेने वाला। 2. प्रतिस्रोतचारी---गली के अन्त से लगा कर उपाश्रय तक स्थित घरों से भिक्षा लेने वाला। 3. अन्तचारी-नगर-ग्रामादि के अन्त भाग में स्थित घरों से भिक्षा लेने वाला। 4. मध्यचारी-नगर-ग्रामादि के मध्य में स्थित घरों से भिक्षा लेने वाला। साधु उक्त चार प्रकार के अभिग्रहों में से किसी एक प्रकार का अभिग्रह लेकर भिक्षा लेने के लिए निकलते हैं और अपने अभिग्रह के अनुसार ही भिक्षा ग्रहण करते हैं (544) / गोल-सूत्र ५४५–चत्तारि गोला पण्णत्ता, तं जहा मधुसित्थगोले, जउगोले, दारुगोले, मट्टियागोले। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–मधुसित्यगोलसमाणे, जउगोलसमाणे, दारुगोलसमाणे, मट्टियागोलसमाणे। गोले चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. मधुसिक्थगोला, 2. जतुगोला, 3. दारुगोला, 4. मृत्तिकागोला / इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे-- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org