________________ 402] [स्थानाङ्गसूत्र राज-सूत्र ५३६-चत्तारि मेहा पण्णत्ता, तं जहा–देसवासी णाममेगे णो सम्बवासी, सबवासी णाममेगे गो देसवासी, एगे देसवासीवि सव्ववासीवि, एगे णो देसवासी णो सव्ववासी। एवामेव चत्तारि रायाणो पण्णत्ता, त जहा—देसाधिवती णाममेगे णो सव्वाधिवती, सव्वाधिवती णाममेगे णो देसाधिवती, एगे देसाधिवतीवि सव्वाधिवतीवि, एगे णो देसाधिवती णो सव्वाधिवती। पुनः मेघ चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. देशवर्षी, न सर्ववर्षी—कोई मेघ किसी एक देश में बरसता है, सब देशों में नहीं बरसता / 2. सर्ववर्षी, न देशवर्षी कोई मेघ सब देशों में बरसता है, किसी एक देश में नहीं बरसता / 3. देशवर्षी भी, सर्ववर्षी भी--कोई मेघ किसी एक देश में भी बरसता है और सब देशों में भी बरसता है। 4. न देशवर्षी, न सर्ववर्षी कोई मेघ न किसी एक देश में बरसता है, न सब देशों में ही बरसता है। इसी प्रकार राजा भी चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे--- 1. देशाधिपति, सर्वाधिपति--कोई राजा किसी एक देश का ही स्वामी होता है, सब देशों का स्वामी नहीं होता। 2. सर्वाधिपति, न देशाधिपति--कोई राजा सब देशों का स्वामी होता है, किसी एक देश ___ का स्वामी नहीं होता। 3. देशाधिपति भी, सर्वाधिपति भी कोई राजा किसी एक देश का भी स्वामी होता है और सब देशों का भी स्वामी होता है। 4. न देशाधिपति और न सर्वाधिपति--कोई राजा न किसी एक देश का स्वामी होता है और न सब देशों का ही स्वामी होता है, जैसे राज्य से भ्रष्ट हुया राजा (536) / मेघ-सूत्र ५४०-चत्तारि मेहा पण्णत्ता, त जहा-पुक्खलसंवट्टए, पज्जुण्णे, जीमूते, जिम्मे / पुक्खलसंवट्टए णं महमेहे एगेणं वासेणं दसवाससहस्साई भावेति / पज्जुण्णे णं महामेहे एगेणं वासेणं दसवाससयाई भावेति / जीमूते णं महामेहे एगणं वासेणं दसवासाई भावेति / जिम्मे णं महामेहे बहहि वासेहि एगं वासं भावेति वा गं वा भावेति / मेघ चार प्रकार के होते हैं / जैसे१. पुष्कलावर्तमेघ, 2. प्रद्य म्नमेघ, 3, जीमूतमेघ, 4. जिम्हमेघ / 1. पुष्कलावर्त महामेघ एक वर्षा से दश हजार वर्ष तक भूमि को जल से स्निग्ध (उपजाऊ) कर देता है। 2. प्रद्य म्न महामेघ एक वर्षा से दश सौ (एक हजार) वर्ष तक भूमि को जल से स्निग्ध __ कर देता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org