________________ चतुर्थ स्थान-चतुर्थ उद्देश ] [ 401 3. क्षेत्रवर्षी भी, अक्षेत्रवर्षी भो-कोई मेघ क्षेत्र पर भी बरसता है और अक्षेत्र पर भी बरसता है। 4. न क्षेत्रवर्षी, न प्रक्षेत्रवर्षी–कोई मेघ न क्षेत्र पर बरसता है और न प्रक्षेत्र पर बरसता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. क्षेत्रवर्षी, न अक्षेत्रवर्षी-कोई पुरुष धर्मक्षेत्र (धर्मस्थान—दया और धर्म के पात्र) पर बरसता (दान देता है), प्रक्षेत्र (अधर्मस्थान) पर नहीं बरसता। 2. अक्षेत्रवर्षी, न क्षेत्रवर्षी-कोई पुरुष प्रक्षेत्र पर बरसता है, क्षेत्र पर नहीं बरसता है। 3. क्षेत्रवर्षी भी, अक्षेत्रवर्षी भी--कोई पुरुष क्षेत्र पर भी बरसता है और अक्षेत्र पर भी बरसता है। 4. न क्षेत्रवर्षी, न अक्षेत्रवर्षी-कोई पुरुष न क्षेत्र पर बरसता है और न अक्षेत्र पर बरसता है (537) / अम्बा-पितृ-सूत्र ५३८-चत्तारि मेहा पण्णत्ता, तं जहा–जणइत्ता णाममेगे णो जिम्मवइत्ता, णिम्मवइत्ता णाममेगे णो जणइत्ता, एगे जणइत्तावि णिम्मवइत्तावि, एगे णो जणइत्ता णो जिम्मवइत्ता। एवामेव चत्तारि अम्मापियरो पण्णत्ता, त जहा--जगइत्ता णाममेगे णो णिम्मवइत्ता, णिम्मवइत्ता णाममे णो जणइत्ता, एगे जणइत्तावि णिम्मवइत्तावि, एगे जो जणइत्ता णो जिम्मवइत्ता / मेघ चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. जनक, न निर्मापक-कोई मेघ अन्न का जनक (उगाने वाला-उत्पन्न करने वाला) होता है, निर्मापक (निर्माण कर फसल देने वाला) नहीं होता। 2. निर्मापक, न जनक-कोई मेघ अन्न का निर्मापक होता है, जनक नहीं होता / 3. जनक भी, निर्मापक भो-कोई मेघ अन्न का जनक भी होता है और निर्मापक भी होता है। 4. न जनक, न निर्मापक—कोई मेघ अन्न का न जनक होता है, न निर्मापक ही होता है। इसी प्रकार माता-पिता भी चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. जनक, न निर्मापक-कोई माता-पिता सन्तान के जनक (जन्म देने वाले) होते हैं, किन्तु निर्मापक (भरण-पोषणादि कर उनका निर्माण करने वाले) नहीं होते। 2. निर्मापक, न जनक-कोई माता-पिता सन्तान के निर्मापक होते हैं, किन्तु जनक नहीं होते। 3. जनक भी, निर्मापक भी-कोई माता-पिता सन्तान के जनक भी होते हैं और निर्मापक भी होते हैं। 4. न जनक, न निर्मापक-कोई माता-पिता सन्तान के न जनक ही होते हैं और न निर्मापक ही होते हैं (538) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org