________________ 400 ] [ स्थानाङ्गसूत्र 3. वर्षक भी, विद्योतक भी--कोई पुरुष दानादि की वर्षा भी करता है और उसका दिखावा कर चमकता भी है। 4. न वर्षक, न विद्योतक-कोई पुरुष न दानादि की वर्षा ही करता है और न देकर के चमकता ही है / (535) ५३६-चत्तारि मेहा पण्णत्ता, त जहा-कालवासी णाममेगे णो अकालवासी, अकालवासी णाममेगे गों कालवासी, एगे कालवासीवि अकालवासीवि, एगे गो कालवासी णो अकालवासी। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, त जहा-कालवासी णाममेगे गो अकालवासी, अकालवासी णाममेगे णो कालवासी, एगे कालवासीवि प्रकालवासीवि, एगे णो कालवासी गो अकालवासी। पुन: मेघ चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे-- 1. कालवर्षी, न अकालवर्षी-कोई मेघ समय पर बरसता है, असमय में नहीं बरसता / 2. अकालवर्षी, न कालवर्षी-कोई मेघ असमय में बरसता है, समय पर नहीं बरसता / 3. कालवर्षी भी, अकालवर्षी भी-कोई मेघ समय पर भी बरसता है और असमय में भी बरसता है। 4. न कालवर्षी, न अकालवर्षी-कोई मेघ न समय पर ही बरसता है और न असमय में ही बरसता है। इसी प्रकार पूरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. कालवर्षी, न अकालवर्षी—कोई पुरुष समय पर दानादि देता है, असमय में नहीं देता। 2. अकालवर्षी, न कालवर्षी कोई पुरुष असमय में दानादि देता है, समय पर नहीं देता। 3. कालवर्षी भी, अकालवर्षी भी-कोई पुरुष समय पर भी दानादि देता है और असमय में भी दानादि देता है। 4. न कालवर्षी, न अकालवर्षी-कोई पुरुष न समय पर ही दानादि देता है और न असमय में ही देता है। ५३७--चत्तारि मेहा पण्णत्ता, त जहा-खेत्तवासी णामगेगे जो अखत्तवासी, अखेतवासी णाममेगे णो खेत्तवासी, एगे खेत्तवासोवि अखेत्तवासीवि, एगे णो खेत्तवासी णो अखेत्तवासी।। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, त जहा-खेत्तवासी णाममेगे जो अखत्तवासी, अखेत्तवासी णाममेगे जो खेत्तवासी, एगे खेत्तवासीवि अखेत्तवासीवि, एगे जो खेत्तवासी णो अखत्तवासी। पुनः मेघ चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. क्षेत्रवर्षी, न अक्षेत्रवर्षी-कोई मेघ क्षेत्र (उर्वरा भूमि) पर बरसता है, अक्षेत्र (ऊसरभूमि) पर नहीं बरसता है। 2. प्रक्षेत्रवर्षी, न क्षेत्रवर्षी-कोई मेघ अक्षेत्र पर वरसता है, क्षेत्र पर नहीं बरसता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org