________________ चतुर्थ स्थान–चतुर्थ उद्देश ] [ 367 माधुकरीवृत्ति या गोचरी प्रभृत्ति भी इसी के दूसरे नाम हैं। जो व्यक्ति उञ्छजीविका या माधुकरीवृत्ति से अपने भक्त-पान को गवेषणा करता है, उसे उञ्छजीविकासम्पन्न कहा जाता है। वृक्ष-विक्रिया-सूत्र ५२६-चउन्विहा रुक्खविगुब्वणा पण्णत्ता, तं जहा–पवालत्ताए, पत्तत्ताए, पुष्फत्ताए, फलताए। वृक्षों की विकरणरूप विक्रिया चार प्रकार की कही गई है / जैसे१. प्रवाल (कोंपल) के रूप से. 2. पत्र के रूप से, 3. पुष्प के रूप से 4. फल के रूप से। (526) वादि-समवसरण-सूत्र ५३०-चत्तारि वादिसमोसरणा पण्णता, तं जहा-किरियावादी, अकिरियावादी, अण्णाणियावादी वेणइयावादी / वादियों के चार समवसरण (सम्मेलन या समुदाय) कहे गये हैं / जैसे१. क्रियावादि-समवसरण-पुण्य-पाप रूप क्रियाओं को मानने वाले प्रास्तिकों का समवसरण / 2. अक्रियावादि-समवसरण-पुण्य-पापरूप रूप क्रियानों को नहीं मानने वाले नास्तिकों का समवसरण / 3. अज्ञानवादि-समवसरण–अज्ञान को ही शान्ति या सुख का कारण माननेवालों का समवसरण / 4. विनयवादि-समवसरण--सभी जीवों की विनय करने से मुक्ति मानने वालों का समवसरण / ५३१–णेरइयाणं चत्तारि वादिसमोसरणा पण्णता, त जहा-किरियावादी, जाव (अकिरियावादी, अण्णाणियावादी) वेणइयावादी। नारकों के चार समवसरण कहे गये हैं / जैसे१. क्रियावादि-समवसरण, 2. अक्रियावादि-समवसरण, 3. अज्ञानवादि-समवसरण, 4. विनयवादि-समवरण / (531) ५३२--एवमसुरकुमाराणवि जाव थणियकुमाराणं। एवं-विलिदियवज्ज जाव वेमाणियाणं। इसी प्रकार असुरकुमारों से लेकर स्तनितकुमारों तक चार-चार वादिसमवसरण कहे गये हैं / इसी प्रकार विकलेन्द्रियों को छोड़कर वैमानिक-पर्यन्त सभी दण्डकों के चार-चार समवसरण जानना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org