________________ 366 ] [ स्थानाङ्ग सूत्र 2. श्रेयान् और पापीयान्-सदृशम्मन्य-कोई पुरुष श्रेयान् होता है, किन्तु अपने आपको पापीयान् के सदश मानता है। 3. पापीयान् और श्रयान्-सदृशम्मन्य-कोई पुरुष पापीयान् होता है, किन्तु अपने आपको श्रेयान् के सदृश मानता है / 4. पापीयान् और पापीयान्-सदृशम्मन्य---कोई पुरुष पापीयान् होता है, और अपने आपको पापीयान् सदृश मानता है / (526) आख्यापन-सूत्र ५२७-चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-प्राघवइत्ता णाममेगे जो पविभावइत्ता, पविभावइत्ता णाममेगे णों प्राघवइत्ता, एगे प्राघवइत्तावि पविभावइत्तावि, एगे जो अाधवइत्ता गो पविभाव इत्ता। पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे-- 1. आख्यायक, न प्रभावक-कोई पुरुष प्रवचन का प्रज्ञापक (पढ़ाने वाला) तो होता है, किन्तु प्रभावक( शासन को प्रभावना करने वाला) नहीं होता है / 2. प्रभावक, न आख्यायक-कोई पुरुष प्रभावक तो होता है, किन्तु आख्यायक नहीं / 3. प्राख्यायक भी, और प्रभावक भी--कोई पुरुष पाख्यायक भी होता है और प्रभावक भी होता है। 4. न पाख्यायक, न प्रभावक---कोई पुरुष न आख्यायक ही होता है, और न प्रभावक ही होता है। (527) ५२८--चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-आघवइत्ता गाममेंगे जो उंछजीविसंपण्णे, उंछजीविसंपण्णे गाममेगे णो प्राघवइत्ता, एगे प्राघवइसावि उंछजीविसंपण्णेवि, एगे णो प्राघवइत्ता णो उंछजीविसंपण्णे। पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. आख्यायक, न उञ्छजीविकासम्पन्न-कोई पुरुष आख्यायक तो होता है, किन्तु उञ्छ जीविकासम्पन्न नहीं होता। 2. उञ्छजीविकासम्पन्न, न आख्यायक-कोई पुरुष उञ्छजीविकासम्पन्न होता है, किन्तु आख्यायक नहीं होता। 3. आख्यायक भी, उञ्छजीविकासम्पन्न भी-कोई पुरुष पाख्यायक भी होता है और उञ्छजीविकासम्पन्न भी होता है। 4. न आख्यायक, न उञ्छजीविकासम्पन्न- कोई पुरुष न पाख्यायक ही होता है, और न उञ्छजीविकासम्पन्न ही होता है (528) / विवेचनअनेक घरों से थोड़ी-थोड़ी भिक्षा के ग्रहण करने को उञ्छ' जीविका कहते हैं / 1. 'उञ्छः कणश प्रादाने' इति यादवः / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org