________________ चतुर्थ स्थान - तृतीय उद्देश ] [ 373 4. न जातिसम्पन्न, न जयसम्पन्न---कोई घोड़ा न जातिसम्पन्न ही होता है और न जय सम्पन्न ही होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. जातिसम्पन्न, न जयसम्पन्न-कोई पुरुष जातिसम्पन्न होता है, किन्तु जयसम्पन्न नहीं होता। 2. जयसम्पन्न, न जातिसम्पन्न-कोई पुरुष जयसम्पन्न तो होता है, किन्तु जातिसम्पन्न नहीं होता। 3. जातिसम्पन्न भी, जयसम्पन्न भी-कोई पुरुष जातिसम्पन्न भी होता है और जयसम्पन्न भी होता है। 4 न जातिसम्पन्न, न जयसम्पन्न—कोई पुरुष न जातिसम्पन्न ही होता है और न जयसम्पन्न ही होता है (473) / कुल-सूत्र ४७४--एवं कुलसंपण्णण य बलसंपण्णेण य, कुलसंपण्णेण य रूवसंपण्णण य, कुलसंपण्णण य जयसंपण्णेण य, एवं बलंसंपणेण य रूवसंपण्णेण य, बलसंपण्णेण जयसंपण्णेण 4 सव्वस्थ पुरिसजाया पडिवक्खो (चत्तारि पकंथगा पण्णत्ता, तं जहा–कुलसंपण्णे णाममेगे णो बलसंपण्णे, बलसंपण्णे णाममेगे णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपणेवि बलसंपण्णेवि, एगे जो कुलसंपण्णे णो बलसंपण्णे।) __ एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा-कुलसंपण्णे गाममेगे णो बलसंपण्णे, बलसंपण्णे णाममेगे णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि बलसंपण्णेवि, एगे णो कुलसंपण्णे णो बलसंपण्णे / घोड़े चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. कुलसम्पन्न, न बलसम्पन्न-कोई घोड़ा कुलसम्पन्न होता है, किन्तु बससम्पन्न नहीं होता। 2. बलसम्पन्न, न कुलसम्पन्न--कोई घोड़ा बलसम्पन्न होता है, किन्तु कुलसम्पन्न नहीं होता। 3. कुलसम्पन्न भी, वलसम्पन्न भी-कोई घोड़ा कुलसम्पन्न भी होता है और बलसम्पन्न भी होता है। 4. न कुलसम्पन्न, न बलसम्पन्न-कोई घोड़ा न कुलसम्पन्न होता है और न बलसम्पन्न ही होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. कुलसम्पन्न, न बलसम्पन्न-कोई पुरुष कुलसम्पन्न होता है, किन्तु बलसम्पन्न नहीं होता। 2. बलसम्पन्न, न कुलसम्पन्न--कोई पुरुष बलसम्पन्न होता है, किन्तु कुलसम्पन्न नहीं होता। 3. कुलसम्पन्न भी, बलसम्पन्न भी—कोई पुरुष कुलसम्पन्न भी होता है और बलसम्पन्न भी होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org