________________ चतुर्थ स्थान-तृतीय उद्देश ] [371 2. कुलसम्पन्न, न जातिसम्पन्न-कोई पुरुष कुल सम्पन्न तो होता है, किन्तु जातिसम्पन्न नहीं होता। 3. जातिसम्पन्न भी, कुलसम्पन्न भी---कोई पुरुष जातिसम्पन्न भी होता है और कुल सम्पन्न भी होता है। 4. न जातिसम्पन्न, न कुलसम्पन्न-कोई पुरुष न जातिसम्पन्न होता है और न कुल सम्पन्न ही होता है (470) / ४७१–चत्तारि पकंथगा पण्णता, तं जहा-जातिसंपण्णे णाममेगे णो बलसंपण्णे 4 / [बलसंपण्णे णाममेगे जो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि बलसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपण्णे गो बलसंपण्णे] / एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–जातिसंपण्णे णाममेगे णो बलसंपण्णे 4 / [बलसंपण्णे णाममेगे जो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि बलसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपण्णे गो बलसंपण्णे] / पुनः घोड़े चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. जातिसम्पन्न, न बलसम्पन्न—कोई घोड़ा जातिसम्पन्न होता है, किन्तु बलसम्पन्न नहीं होता। 2. बलसम्पन्न, न जातिसम्पन्न--कोई घोड़ा वलसम्पन्न तो होता है, किन्तु जातिसम्पन्न नहीं होता। 3. जातिसम्पन्न भी, बलसम्पन्न भी-कोई घोड़ा जातिसम्पन्न भी होता है और बल सम्पन्न भी होता है। 4. न जातिसम्पन्न, न बलसम्पन्न-कोई घोड़ा न जातिसम्पन्न ही होता है और न बल__ सम्पन्न ही होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. जातिसम्पन्न, न बलसम्पन्न-कोई :पुरुष जातिसम्पन्न तो होता है किन्तु बलसम्पन्न नहीं होता। 2. बलसम्पन्न, न जातिसम्पन्न-कोई पुरुष बलसम्पन्न तो होता है, किन्तु जातिसम्पन्न नहीं होता। 3. जातिसम्पन्न भी बलसम्पन्न भी-कोई पुरुष जातिसम्पन्न भी होता है और बलसम्पन्न भी होता है। 4. न जातिसम्पन्न, न बलसम्पन्न-कोई पुरुष न जातिसम्पन्न ही होता है और न बल सम्पन्न ही होता है (471) / ४७२-चत्तारि [?] कंथगा पण्णता, तं जहा–जातिसंपण्णे णाममेगे णो रूबसंपण्णे 4 / [स्वसंपण्णे णाममेगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि रूबसंपण्णेवि, एगे जो जातिसंपण्णे णो रूवसंपण्णे] / एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-जातिसंपण्णे णाममेगे मो रूपसंपणे 4 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org