________________ 370 ] [स्थानाङ्गसूत्र 2. पाकीर्ण और खलुकविहारी-कोई घोड़ा आकीर्ण होकर भी खलुकबिहारी होता है, ___अर्थात् आरोही को मार्ग में अड़-अड़ कर परेशान करता है। 3. खलुक और प्राकीर्ण विहारी-कोई घोड़ा पहले खलुक होता है, किन्तु पीछे पाकीर्ण विहारी हो जाता है। 4. खलुक और खलुकविहारी-कोई घोड़ा खलुक भी होता है और खलुकविहारी भी होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. पाकीर्ण और आकीर्णविहारी—कोई पुरुष बुद्धिमान् होता है और बुद्धिमानों के समान व्यवहार करता है। 2. पाकीर्ण और खलुकविहारी-कोई पुरुष बुद्धिमान् तो होता है, किन्तु मूखों के समान व्यवहार करता है। 3. खलुक और प्राकीर्णविहारी--कोई पुरुष मन्दबुद्धि होता है, किन्तु बुद्धिमानों के समान व्यवहार करता है। 4. खलुक और खलुकविहारी--कोई पुरुष मूर्ख होता है और मूखों के समान ही व्यवहार करता है (466) / जाति-सूत्र ४७०-चत्तारि पकंथगा पण्णत्ता, तं जहा-जातिसंपण्णे णाममेगे णो कुलसंपण्णे 4 / [कुलसंपण्णे णाममेगे जो जातिसंपणे, एगे जातिसंपण्णेवि कुलसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपण्णे पो कुलसंपण्णे]। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–जातिसंपण्णे णामोंगे चउभंगो। [णो कुलसंपण्णे, कुलसंपण्णे णाममेगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि कुलसंपण्णेवि, एगे जो जातिसंपण्णे णो कुलसंपण्णे] / घोड़े चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे-- 1. जातिसम्पन्न, न कुलसम्पन्न--कोई घोड़ा जातिसम्पन्न (उत्तम मातृपक्षवाला) तो होता ___ है, किन्तु कुलसम्पन्न (उत्तम पितृपक्षवाला) नहीं होता। 2. कुलसम्पन्न, न जातिसम्पन्न--कोई घोड़ा कुलसम्पन्न होता है, किन्तु जातिसम्पन्न नहीं होता। 3. जातिसम्पन्न भी, कुलसम्पन्न भी--कोई घोड़ा जातिसम्पन्न भी होता है और कुल सम्पन्न भी होता है। 4. न जातिसम्पन्न, न कुलसम्पन्न-कोई घोड़ा न जातिसम्पन्न ही होता है और न कुल सम्पन्न ही होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. जातिसम्पन्न, न कुलसम्पन्न-कोई पुरुष जातिसम्पन्न तो होता है, किन्तु कुलसम्पन्न नहीं होता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org