________________ चतुर्थ स्थान-तृतीय उद्देश ] [ 381 4. मेरे लिए उद्दिष्ट पात्र यदि दाता का निजी है, उपभुक्त है और उसके द्वारा छोड़ने त्याग देने के योग्य है, तो मैं याचना करूंगा, अन्य नहीं। यह चौथी पात्र-प्रतिमा है। (4) स्थान-प्रतिमा के चार प्रकार१. कायोत्सर्ग, ध्यान और अध्ययन के लिए मैं जिस अचित्त स्थान का आश्रय लूगा, वहां पर ही मैं हाथ-पैर पसारूगा, वहीं पर अल्प पाद-विचरण करूगा, और भित्ति आदि का सहारा लगा, अन्यथा नहीं। यह पहली स्थानप्रतिमा है। 2. स्वीकृत स्थान में भी मैं पाद-विचरण नहीं करूंगा, यह दूसरी स्थानप्रतिमा है / 3. स्वीकृत स्थान में भी मैं भित्ति आदि का सहारा नहीं लूगा, यह तीसरी स्थान प्रतिमा है। 4. स्वीकृत स्थान में भी मैं न हाथ-पैर पसारूगा, न भित्ति आदि का सहारा लूगा, न पाद-विचरण करूंगा। किन्तु जैसा कायोत्सर्ग, पद्मासन या अन्य प्रासन से अवस्थित होऊंगा, नियत काल तक तथैव अवस्थित रहूंगा। यह चौथी स्थानप्रतिमा है। शरीर-सूत्र ४६१–चत्तारि सरोरगा जीवफुडा पण्णत्ता, तं जहा–वेउम्बिए, आहारए, तेथए, कम्मए / चार शरीर जीव-स्पृष्ट कहे गये हैं / जैसे१. वैक्रियशरीर, 2. आहारकशरीर, 3. तेजस शरीर, 4. कार्मण शरीर (461) / ४६२–चत्तारि सरोरगा कम्मुम्मीसगा पण्णता, तं जहा-ओरालिए, वेउचिए, आहारए, तेयए। चार शरीर कार्मणशरीर से संयुक्त कहे गये हैं / 1. औदारिक शरीर, 2. वैक्रिय शरीर, 3. आहारक शरीर, 4. तेजस शरीर (462) / विवेचन-वैक्रिय आदि चार शरीरों को जीव-स्पृष्ट कहा गया है, इसका अभिप्राय यह है कि ये चारों शरीर सदा जीव से व्याप्त ही मिलेंगे। जीव से रहित बैक्रिय आदि शरीरों की सत्ता त्रिकाल में भी सम्भव नहीं है अर्थात् जीव द्वारा त्यक्त वैक्रिय आदि शरीर पृथक् रूप से कभी नहीं मिलेंगे। जीव के बहिर्गमन करते ही वैक्रिय आदि शरीरों के पुद्गल-परमाणु तत्काल बिखर जाते हैं किन्तु औदारिक शरीर की स्थिति उक्त चारों शरीरों से भिन्न है। जोव के बहिर्गमन करने के बाद भी निर्जीव या मुर्दा औदारिक शरीर अमुक काल तक ज्यों का त्यों पड़ा रहता है, उसके परमाणुओं का वैक्रियादि शरीरों के समान तत्काल विघटन नहीं होता है। __ चार शरीरों को कार्मणशरीर से संयुक्त कहा गया है, उसका अर्थ यह है कि अकेला कार्मणशरीर कभी नहीं पाया जाता है। जब भी और जिस किसी भी गति में वह मिलेगा, तब वह औदारिकादि चार शरीरों में से किसी एक, दो या तीन के साथ सम्मिश्र, संपृक्त या संयुक्त ही मिलेगा। इसी कारण से जीव-युक्त चार शरीरों को कार्मण शरीर-संयुक्त कहा गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org