________________ चतुर्थ स्थान-चतुर्थ उद्देश ] [ 363 ५१६-चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-वणकरे णाममेगे णो वणसारक्खी, वणसारक्खी णाममेगे णो वणकरे, एगे वणकरेवि वणसारक्खीवि, एगे णो बणकरे णो वणसारक्खी। पुनः [वणकर] पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे--- 1. व्रणकर, न व्रण संरोही-कोई पुरुष व्रण करता है, किन्तु व्रण को पट्टी आदि बाँध कर उसका संरक्षण नहीं करता। 2. व्रणसंरक्षी, न व्रणकर-कोई पुरुष व्रण का संरक्षण करता है, किन्तु व्रण नहीं करता। 3. व्रणकर भी, व्रणसंरक्षी भी कोई पुरुष व्रण करता भी है और उसका संरक्षण भी करता है। 4. न व्रणकर, न व्रणसंरक्षी-कोई पुरुष न व्रण करता ही है और न उसका संरक्षण ही करता है (516) / ५२०–चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--वणकरे णाममेगे णो वणसरोही, वणसरोही णाममेगे णो वणकरे, एगे बणकरेवि वणसरोहीवि, एगे णो वणकरे णो वणसरोही। पुनः [त्रणकर] पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे--- 1. व्रणकर, न व्रणरोही-कोई पुरुष व्रण करता है, किन्तु व्रणरोही नहीं होता। (उसमें औषधि लगाकर उसे भरता नहीं है)। 2. व्रणरोही, न व्रणकर-कोई पुरुष व्रणरोही होता है, किन्तु वणकर नहीं होता / 3. व्रणकर भी, व्रणसंरोही भी-कोई पुरुष व्रणकर भी होता है और व्रणरोहो भी होता है। 4. न व्रणकर, न व्रणरोही --कोई पुरुष न व्रणकर होता है, न व्रणरोही ही होता - है (520) / अन्तर्बहिण-सूत्र ५२१--चत्तारि वणा पण्णत्ता, तं जहा-अंतोसल्ले णाममेगे णो बाहिसल्ले, बाहिंसल्ले णाममेगे जो अंतोसल्ले, एगे अंतोसल्लेवि बाहिंसल्लेवि, एगे णो अंतोसल्ले णो बाहिंसल्ले / एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—अंतोसल्ले णाममेगे जो बाहिसल्ले, बाहिसल्ले णाममेगे णो अंतोसल्ले, एगे अंतोसल्लेवि बाहिसहलेवि, एगे जो अंतोसल्ले णो बाहिसल्ले / व्रण चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. अन्तःशल्य, न बहिःशल्य-कोई व्रण अन्तःशल्य (भीतरी धाव वाला) होता है, बहिः शल्य (बाहरी घाव वाला) नहीं होता। 2. बहिःशल्य, न अन्तःशल्य-कोई व्रण बहिःशल्य होता है, अन्तः शल्य नहीं होता। 3. अन्तःशल्य भी, बहिःशल्य भी-कोई व्रण अन्तःशल्य भी होता है और बहिःशल्य भी होता है। 4. न अन्तःशल्य, न बहिःशल्य--कोई व्रण न अन्तःशल्य होता है और न बहिःशल्य ही होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org