________________ 380 ] [स्थानाङ्गसूत्र ४८६-चत्तारि पायपडिमाग्रो पण्णत्तायो। चार पात्र-प्रतिमाएं (पात्र-विषयक-प्रतिज्ञाएं) कही गई हैं (486) / ४६०-चत्तारि ठाणपडिमानो पण्णतायो। चार स्थान-प्रतिमाएं (स्थान विषयक-प्रतिज्ञाएं) कही गई हैं (460) / विवेचन-मूल सूत्रों में उक्त प्रतिमाओं के चार-चार प्रकारों का उल्लेख नहीं किया गया है, पर आयारचूला के आधार पर संस्कृत टीकाकार ने चारों प्रतिमाओं के चारों प्रकारों का वर्णन इस प्रकार किया है--- (1) शय्या-प्रतिमा के चार प्रकार१. मेरे लिए उद्दिष्ट (नाम-निर्देश-पूर्वक संकल्पित) शय्या (काष्ठ-फलक आदि शयन करने की वस्तु) मिलेगी तो ग्रहण करूगा, अन्य अनुद्दिष्ट शय्या को नहीं ग्रहण करूंगा। यह पहली शय्या-प्रतिमा है। 2. मेरे लिए उद्दिष्ट शय्या को यदि मैं देखगा, तो उसे ही ग्रहण करूगा, अन्य अनुद्दिष्ट और अदृष्ट को नहीं ग्रहण करूंगा। यह दूसरी शय्याप्रतिमा है। 3. मेरे लिए उद्दिष्ट शय्या यदि शय्यातर के घर में होगी तो उसे ही ग्रहण करूंगा, अन्यथा नहीं / यह तीसरी शय्याप्रतिमा है। 4. मेरे लिए उद्दिष्ट शय्या यदि यथासंसृत (सहज बिछी हुई) मिलेगी तो उसे ग्रहण करूंगा, अन्यथा नहीं। यह चौथी शय्याप्रतिमा है। (2) वस्त्र-प्रतिमा के चार प्रकार१. मेरे लिए उद्दिष्ट और 'यह कपास-निर्मित है, या ऊन-निर्मित हो इस प्रकार से घोषित वस्त्र की ही मैं याचना करूगा, अन्य की नहीं। यह पहली वस्त्रप्रतिमा है। 2. मेरे लिए उद्दिष्ट और सूती-ऊनी आदि नाम से घोषित वस्त्र यदि देखूगा, तो उसकी ही याचना करूगा, अन्य की नहीं। यह दूसरी वस्त्रप्रतिमा है। 3. मेरे लिए उद्दिष्ट और घोषित वस्त्र यदि शय्यातर के द्वारा उपभुक्त-उपयोग में लाया हुआ हो तो उनकी याचना करूगा, अन्य की नहीं। यह तीसरी वस्त्रप्रतिमा है। 4. मेरे लिए उद्दिष्ट और धोषित वस्त्र यदि शय्यातर के द्वारा फेंक देने योग्य हो तो उसकी ___ याचना करूंगा, अन्य की नहीं। यह चौथी वस्त्रप्रतिमा है / (3) पात्र-प्रतिमा के चार प्रकार१. मेरे लिए उद्दिष्ट काष्ठ-पात्र आदि की मैं याचना करूंगा, अन्य की नहीं, यह पहली पात्र-प्रतिमा है। 2. मेरे लिए उद्दिष्ट पात्र यदि मैं देखूगा, तो उसकी मैं याचना करूगा, अन्य की नहीं। यह दूसरी पात्र-प्रतिमा है / 3. मेरे लिए उद्दिष्ट पात्र यदि दाता का निजी है और उसके द्वारा उपभुक्त है, तो मैं याचना करूगा, अन्यथा नहीं / यह तीसरी पात्र-प्रतिमा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org