________________ 384] [स्थानाङ्गसूत्र 4. उपन्यासोपनय--वादी के द्वारा किये गये उपन्यास के विघटन (खंडन) के लिए प्रतिवादी के द्वारा दिया गया विरुद्धार्थक उपनय (466) / ५००-प्राहरणे चउबिहे पण्णत्ते, तं जहा--प्रवाए, उवाए, ठवणाकम्मै, पडुप्पण्णविणासी। आहरण रूप ज्ञात (दृष्टान्त) चार प्रकार का कहा गया है / जैसे१. अपाय-आहरण- हेयधर्म का ज्ञापक दृष्टान्त / 2. उपाय-आहरण-उपादेय वस्तु का उपाय बताने वाला दृष्टान्त / 3. स्थापनाकर्म-पाहरण-अभीष्ट की स्थापना के लिए प्रयुक्त दृष्टान्त / 4. प्रत्युत्पन्नविनाशी-पाहरण-उत्पन्न दूषण का परिहार करने के लिए दिया जाने __ वाला दृष्टान्त (500) / ५०१–अाहरणतद्देसे चउबिहे पण्णते, तं जहा-अणुसिट्ठी, उवालंभे, पुच्छा, णिस्सावयणे। आहरण-तद्देश ज्ञात (दृष्टान्त) चार प्रकार का कहा गया है / जैसे१. अनुशिष्टि-अाहरणतद्देश-प्रतिवादी के मन्तव्य का अनुचित अंश स्वीकार कर अनुचित ___ अंश का निराकरण करना। 2. उपालम्भ-ग्राहरण-तद्देश-दूसरे के मत को उसी की मान्यता से दूषित करना / 3. पृच्छा-आहरण-तद्देश-प्रश्नों-प्रतिप्रश्नों के द्वारा पर-मत को प्रसिद्ध करना। 4. निःश्रावचन-ग्राहरण-तद्देश-एक के माध्यम से दूसरे को शिक्षा देना (501) / ५०२–प्राहरणतदोसे चउब्बिहे पण्णत्ते, त जहा-अधम्मजुत्त, पडिलोमे, अत्तोवणोते, दुरुवणीते। प्राहरण-तद्दोष ज्ञात (दृष्टान्त) चार प्रकार का कहा गया है / जैसे१. अधर्म-युक्त-पाहरण-तद्दोष--अधर्म बुद्धि को उत्पन्न करने वाला दृष्टान्त / 2. प्रतिलोम-आहरण-तद्दोष-अपसिद्धान्त का प्रतिपादक दृष्टान्त, अथवा प्रतिकूल प्राचरण ___ की शिक्षा देने वाला दृष्टान्त / 3. आत्मोपनीत-पाहरण-तद्दोष-पर-मत में दोष दिखाने के लिए प्रयुक्त किया गया, किन्तु स्वमत का दूषक दृष्टान्त / 4. दुरुपनीत-ग्राहण-तद्दोष-दोष-युक्त निगमन वाला दृष्टान्त (502) / ५०३-उवण्णासोवणए चउविहे पण्णते, तं जहा--तब्वत्थुते, तदण्णवत्थुते, पडिणिभे, हेतू / उपन्यासोपनय-ज्ञात (दृष्टान्त) चार प्रकार का कहा गया है / जैसे१. तद्-वस्तुक उपन्यासोपनय-वादी के द्वारा उपन्यास किये गये हेतु से उसका ही निराकरण करना। 2. तदन्यवस्तुक-उपन्यासोपनय-उपन्यास की गई वस्तु से भिन्न भी वस्तु में प्रतिवादी की बात को पकड़ कर उसे हराना / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org