________________ 354] [ स्थानाङ्गमूत्र 3. सुहृत्-सुन्दर मनोवृत्तिवाला हितैषी, सज्जन पुरुष / 4. सहायक-संकट के समय सहायता करने वाला, निःस्वार्थ व्यक्ति / 5. संगतिक-जिसके साथ सदा संगति-उठना-बैठना आदि होता रहता है। ऐसे मित्रादिकों से भी मिलने के लिए देव आने की इच्छा करते हैं और आते भी हैं / तथा जिनके साथ पूर्वभव में यह प्रतिज्ञा हुई हो कि जो पहले स्वर्ग से च्युत होकर मनुष्य हो और यदि वह काम-भोगों में लिप्त होकर संयम को धारण करना भूल जावे तो उसे संबोधने के लिए स्वर्गस्थ देव को पाकर उसे प्रबोध देना चाहिए या नो पहले देवलोक में उत्पन्न हो वह दूसरे को प्रतिबोध दे, ऐसा प्रतिज्ञाबद्ध देव भी अपने सांगरिक पुरुष को संबोधना करने के लिए मनुष्यलोक में आता है। अन्धकार-उद्योतादि-सूत्र ४३५–चहि ठाणेहि लोगंधगारे सिया, तं जहा–अरहंतेहि वोच्छिज्जमाणेह, अरहंतपण्णत्ते धम्मे वोच्छिज्जमाणे, पुव्वगते वोच्छिज्जमाणे, जायतेजे वोच्छिज्जमाणे / चार कारणों से मनुष्यलोक में अन्धकार होता है / जैसे१. अर्हन्तों-तीर्थकरों के विच्छेद हो जाने पर, 2. तीर्थंकरों द्वारा प्ररूपित धर्म के विच्छेद होने पर, 3. पूर्वगत श्रु त के विच्छेद हो जाने पर, 4. जाततेजस् (अग्नि) के विच्छेद हो जाने पर। इन चार कारणों से मनुष्यलोक में (भाव से, द्रव्य से अथवा द्रव्य-भाव दोनों से) अन्धकार हो जाता है (435) / ४३६–चहि ठाणेहि लोउज्जोते सिया, तं जहा-अरहतेहिं जायमार्गाह, प्ररहतेहि पन्वयमाहिं, अरहताणं गाणुप्पायमहिमासु, अरहंताणं परिनिव्वाणमहिमासु। चार कारणों से मनुष्यलोक में उद्योत (प्रकाश) होता है / जैसे१. अर्हन्तों-तीर्थंकरों के उत्पन्न होने पर, 2. अर्हन्तों के प्रजित (दीक्षित) होने के अवसर पर, 3. अर्हन्तों को केवलज्ञान उत्पन्न होने की महिमा के अवसर पर, 4. अर्हन्तों के परिनिर्वाण कल्याण की महिमा के अवसर पर / इन चार कारणों से मनुष्यलोक में उद्योत होता है / ४३७-एवं देवंधगारे, देवज्जोते, देवसण्णिवाते, देवुक्कलियाए, देवकहकहए, [चउहि ठाणेहि देवंधगारे सिया, तं जहा-परहंतेहिं वोच्छिज्जमाणेहि, अरहंतपण्णत्ते धम्मे वोच्छिज्जमाणे, पुवगते वोच्छिज्जमाणे, जायतेजे वोच्छिज्जमाणे / चार कारणों से देवलोक में अन्धकार होता है / जैसे१. अर्हन्तों के व्युच्छेद हो जाने पर, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org