________________ 364 ] [ स्थानाङ्गसूत्र ४५७-चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-दुग्गए णाममेगे दुप्पडिताणंदे, दुग्गए गाममेगे सुष्पडिताणंदे 4 / [सुग्गए गाममेगे दुप्पडिताणंदे, सुग्गए णाममेगे सुप्पडिताणंदे] / पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. दुर्गत और दुष्प्रत्यानन्द-कोई पुरुष दुर्गत और दुष्प्रत्यानन्द (कृतघ्न) होता है। 2. दुर्गत और सुप्रत्यानन्द-कोई पुरुष दुर्गत होकर भी सुप्रत्यानन्द (कृतज्ञ) होता है / 3. सुगत और दुष्प्रत्यानन्द-कोई पुरुष सुगत होकर भी दुष्प्रत्यानन्द (कृतघ्न) होता है। 4. सुगत और सुप्रत्यानन्द--कोई पुरुष सुगत और सुप्रत्यानन्द (कृतज्ञ) होता है (457) / विवेचन-जो पुरुष दूसरे के द्वारा किये गये उपकार को नहीं मानता है, उसे दुष्प्रत्यानन्द या कृतघ्न कहते हैं और जो दूसरे के द्वारा किये गये उपकार को मानता है, उसे सुप्रत्यानन्द या कृतज्ञ कहते हैं। ४५८-चत्तारि पुरिसजाया पणत्ता, त जहा-दुग्गए णाममेगे दुग्गतिगामी, दुग्गए णाममेगे सुग्गतिगामी। [सुग्गए णाममेगे दुग्गतिगामी, सुग्गए णाममेगे सुग्गतिगामी] 4 / पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे-- 1. दुर्गत और दुर्गतिगामी—कोई पुरुष दुर्गत (दरिद्र) और (खोटे कार्य करके) दुर्गतिगामी होता है। 2. दुर्गत और सुगतिगामी-कोई पुरुष दुर्गत और (उत्तम कार्य करके) सुगतिगामी होता है / 3. सुगत और दुर्गतिगामी-कोई पुरुष सुगत (सम्पन्न) और दुर्गतिगामी होता है / 4. सुगत और सुगतिगामी--कोई पुरुष सुगत और सुगतिगामी होता है (458) / ४५६-चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-~-दुग्गए गाममेगे दुग्गति गते, दुग्गए णाममेगे सुग्गति गते / [सुग्गए णाममेगे दुग्गति गते, सुग्गए णाममेगे सुग्गति गते] 41 पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे-- 1. दुर्गत और दुर्गति-गत--कोई पुरुष दुर्गत होकर दुर्गति को प्राप्त हुआ है। 2. दुर्गत और सुगति-मात-कोई पुरुष दुर्गत होकर भी सुगति को प्राप्त हुआ है। 3. सुगत और दुर्गति-गत-कोई पुरुष सुगत होकर भी दुर्गति को प्राप्त हुआ है। 4. सुगत और सुगति-गत-कोई पुरुष सुगत होकर सुगति को ही प्राप्त हुआ है (456) / तमः-ज्योति-सूत्र ४६०--चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा- तमे णाममेगे तमे, तमे णाममेगे जोती, जोती णाममेगे तमे, जोती णाममेगे नोती। पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. तम और तम-कोई पुरुष पहले भी तम (अज्ञानी) होता है और पीछे भी तम (अज्ञानी) होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org