________________ चतुर्थ स्थान-तृतीय उद्देश] [ 327 एवं जहा जाणेण [चत्तारि जुग्गा पण्णता, त जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणते, जुत्ते गाममेगे अजुत्तपरिणते, अजुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तपरिणते / एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, त जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणते, जुत्त णाममेगे अजुत्तपरिणते, अजुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तपरिणते] / पुन: युग्य चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. युक्त और युक्त-परिणत-कोई युग्य युक्त और युक्त-परिणत होता है। 2. युक्त और अयुक्त-परिणत---कोई युग्य युक्त होकर भी अयुक्त-परिणत होता है। 3. अयुक्त और युक्त-परिणत-कोई युग्य अयुक्त होकर भी युक्त-परिणत होता है / 4. अयुक्त और अयुक्त-परिणत---कोई युग्य न युक्त ही होता है और न युक्त-परिणत ही होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं१. युक्त और युक्त-परिणत-कोई पुरुष गुणों से भी युक्त होता है और योग्य परिणतिवाला भी होता है। 2. युक्त और अयुक्त-परिणत—कोई पुरुष गुणों से तो युक्त होता है, किन्तु योग्य परिणति वाला नहीं होता। 3. अयुक्त और युक्त-परिणत-कोई पुरुष गुणों से युक्त नहीं होता, किन्तु योग्य परिणति वाला होता है। 4. अयुक्त और अयुक्त-परिणत-कोई पुरुष न गुणों से ही युक्त होता है और न योग्य परिणति वाला होता है (376) / ३७७-[चत्तारि जुग्गा पण्णत्ता, तं जहा–जुत्ते णाममेगे जुत्तरूवे, जुत्ते णाममेगे अजुत्तरूवे, अजुत्ते गाममेगे जुत्तरूवे, अजुत्ते गाममेगे अजुत्तरूवे / / एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-जुत्ते गाममेगे जुत्तरूवे, जुत्ते गाममेगे अजुत्तरूवे, अजुते णाममेगे जुत्तरूवे, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तरूवे] / पुनः युग्य चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. युक्त और युक्त रूप-कोई युग्य युक्त और योग्य रूप वाला होता है। 2. युक्त और अयुक्त रूप—कोई युग्य युक्त, किन्तु अयोग्य रूप वाला होता है / 3. अयुक्त और युक्त रूप -कोई युग्य अयुक्त, किन्तु योग्य रूप वाला होता है। 4. अयुक्त और अयुक्त रूप-कोई युग्य अयुक्त और अयुक्त रूप वाला होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. युक्त और युक्तरूप-कोई पुरुष युक्त और योग्य रूप वाला होता है। 2. युक्त और अयुक्तरूप---कोई पुरुष युक्त, किन्तु अयोग्य रूप वाला होता है / 3. अयुक्त और युक्तरूप-कोई पुरुष अयुक्त, किन्तु योग्य रूप वाला होता है / 4. अयुक्त और अयुक्तरूप-कोई पुरुष अयुक्त और अयोग्य रूप वाला होता है (377) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org