________________ [ 325 चतुर्थ स्थान-तृतीय उद्देश ] 4. अयुक्त और अयुक्त-परिणत-कोई पुरुष न सत्कार्य से युक्त होता है और न युक्त-परि___णत ही होता है (372) / ३७३--चत्तारि जाणा पण्णत्ता, त जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्तरूवे, जुत्ते णाममेगे अजुत्तरूवे, अजुत्ते णामोंगे जुत्तरूवे, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तरूवे / एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, त जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्तरूबे, जुत्ते णामभेगे अजुत्तरूवे, प्रजुत्ते णाममेगे जुत्तरूवे, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तरूवे / पुनः यात चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. युक्त और युक्तरूप--कोई यान बैल आदि से युक्त और युक्तरूप वाला होता है। 2. युक्त और अयुक्त-रूप--कोई यान बैल आदि से युक्त, किन्तु अयुक्तरूप बाला होता है। 3. अयुक्त और युक्तरूप-कोई यान बैल आदि से अयुक्त, किन्तु युक्तरूप वाला होता है। 4. अयुक्त और अयुक्तरूप-कोई यान न बैल आदि से युक्त होता है और न युक्तरूप वाला __ही होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. युक्त और युक्तरूप कोई पुरुष गुणों से भी युक्त होता है और रूप से (वेष आदि से) भी युक्त होता है। 2. युक्त और अयुक्तरूप-कोई पुरुष गुणों से युक्त होता है, किन्तु रूप से युक्त नहीं होता है। 3. अयुक्त और युक्तरूप-कोई पुरुष गुणों से अयुक्त होता है, किन्तु रूप से युक्त होता है। 4. अयुक्त और अयुक्त रूप--कोई पुरुष न गुणों से ही युक्त होता है और न रूप से ही युक्त होता है (373) / ३७४---नत्तारि जाणा पण्णता, त जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्तसोभे, जुत्ते गाममेगे अजुत्तसोभे, जजुत्ते णाममेगे जुत्तसोभे, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तसोभे। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, त जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्तसोभे, जुत्ते णाममेगे प्रजत्तसोभे, अजुत्ते णाममेगे जुत्तसोभे, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तसोमे। पुनः यान चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. युक्त और युक्तशोभ-कोई यान बैल आदि से भी युक्त होता है और वस्त्राभरणादि की __शोभा से भी युक्त होता है। 2. युक्त और अयुक्तशोभ-कोई यान बैल आदि से तो युक्त होता है, किन्तु शोभा से युक्त नहीं होता है। 3. अयुक्त और युक्त शोभ--कोई यान बैल आदि से युक्त नहीं होता, किन्तु शोभा से युक्त होता है। 4. अयुक्त और अयुक्तशोभ-कोई यान न बैलादि से युक्त होता है और न शोभा से ही युक्त होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org