________________ चतुर्थ स्थान-- तृतीय उद्देश / [ 333 युग्य (जोते जानेवाले घोड़े आदि) का ऋत (गमन) चार प्रकार का कहा गया है / जैसे१. पथयायो, न उत्पथयायो-कोई युग्य मार्गगामी होता है, किन्तु उन्मार्गगामी नहीं होता / 2. उत्पथयायो, न पथयायो--कोई युग्य उन्मार्गगामी होता है, किन्तु मार्गगामी नहीं होता। 3. पथयायी-उत्पथयायो-कोई युग्य मार्गगामी भी होता है और उन्मार्गगामो भो होता है। 4. न पथयायो, न उत्पथयायी-कोई युग्य न मार्गगामी होता है और न उन्मार्गगामी होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे-- 1. पथयायी, न उत्पथयायो---कोई पुरुष मार्गगामी होता है, किन्तु उन्मार्गगामी नहीं होना / 2. उत्पथयायी, न पथयायी--कोई पुरुष उन्मार्गगामी होता है, किन्तु मार्गगामी नहीं होता / 3. पथयायी भी, उत्पथयायी भी--कोई पुरुष मार्गगामी भी होता है और उन्मार्गमामी भी होता है। 4. न पथयायी, न उत्पथयायी--कोई पुरुष न मार्गगामी होता है और न उन्मार्गगामी __ होता है (388) / रूप-शील-सूत्र ३८६-चत्तारि पुरफा पण्णसा, त जहा-रूवसंपण्णे णाममेगे जो गंधसंपण्णे, गंधसंपण्णे णाममेगे णो रूवसंपण्णे, एगे रूवसंपण्णेवि गंधसंपण्णेवि, एगे णो रूवसंपण्णे णो गंधसंपण्णे / एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, त जहा- रूबसंपण्णे गाममेगे णो सोलसंपण्णे, सीलसंपण्णे णाममेगे णो रूवसंपण्णे, एगे रूवसंपणेवि सीलसंपणेवि, एगे णो रूवसंपण्णे गो सीलसंपण्णे। पुष्प चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे-- 1. रूपसम्पन्न. न गन्धसम्पन्न---कोई फूल रूपसम्पन्न होता है, किन्तु गन्धसम्पन्न नहीं होता / जैसे--प्राकुलि का फूल / 2. गन्धसम्पन्न, न रूपसम्पन्न--कोई फूल गन्धसम्पन्न होता है, किन्तु रूपसम्पन्न नहीं होता। जैसे--बकुल का फूल / 3. रूपसम्पन्न भी, गन्धसम्पन्न भी-कोई फूल रूपसम्पन्न भी होता है और गन्धसम्पन्न भी होता है / जैसे--जुही का फूल / 4. न रूपसम्पन्न, न गन्धसम्पन्न-कोई फूल न रूपसम्पन्न होता है और न गन्धसम्पन्न ही होता है / जैसे---वदरी (बोरड़ी) का फूल / इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे-- 1. रूपसम्पन्न, न शीलसम्पन्न-कोई पुरुष रूपसम्पन्न होता है, किन्तु शीलसम्पन्न नहीं होता। 2. शीलसम्पन्न, न रूपसम्पन्न--कोई पुरुष शीलसम्पन्न होता है, किन्तु रूपसम्पन्न नहीं होता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org