________________ 338] [ स्थानाङ्गसूत्र बल-सूत्र ४०१–चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–बलसंपण्णे णाममेगे णो रूवसंपणे, रूवसंपण्णे णाममेगे जो बलसंपण्णे, एगे बलसंपण्णेवि रूवसंपण्णेवि, एगे णो बलसंपण्णे णो रूवसंपणे। पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं जैसे१. बलसम्पन्न, रूपसम्पन्न न--कोई पुरुष बलसम्पन्न होता है, किन्तु रूपसम्पन्न नहीं होता। 2. रूपसम्पन्न, बलसम्पन्न न—कोई पुरुष रूपसम्पन्न होता है, किन्तु बलसम्पन्न नहीं होता। 3. बलसम्पन्न भी, रूपसम्पन्न भी-कोई पुरुष बलसम्पन्न भी होता है और रूपसम्पन्न भी होता है। 4. न बलसम्पन्न, न रूपसम्पन्न-कोई पुरुष न बलसम्पन्न होता है और न रूपसम्पन्न _ही होता है (401) / ४०२-~-एवं बलेण य, सुत्तेण य, एवं बलेण य, सोलेण य, एवं बलेण य, चरित्तेण य, [चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–बलसंपण्णे णाममेगे णो सुयसंपण्णे, सुयसंपण्णे गाममेगे णो बलसंपण्णे, एगे बलसंपण्णेवि सुयसंपण्णेवि, एगे णो बलसंपण्णे णो सुयसंपण्णे] / पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. बलसम्पन्न, श्रु तसम्पन्न न-कोई पुरुष बलसम्पन्न होता है, किन्तु श्रुतसम्पन्न नहीं होता। 2. श्रुतसम्पन्न, बलसम्पन्न न--कोई पुरुष श्रुतसम्पन्न होता है, किन्तु बलसम्पन्न नहीं होता। 3. बलसम्पन्न भी, थ तसम्पन्न भी--कोई पुरुष बलसम्पन्न भी होता है और श्रु तसम्पन्न भी होता है। 4. न बलसम्पन्न, न श्रु तसम्पन्न-कोई पुरुष न बलसम्पन्न होता है और न श्रुतसम्पन्न ही होता है (402) / ४०३-[चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा-बलसंपण्णे णाममेगे णो सीलसंपण्णे, सोलसंपण्णे णाममेगे णो बलसंपण्णे, एगे बलसंपण्णेवि सीलसंपण्णेवि, एगे गो बलसंपण्णे णो सीलसंपण्णे। पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. बलसम्पन्न, शीलसम्पन्न न—कोई पुरुष बलसम्पन्न होता है, किन्तु शीलसम्पन्न नहीं होता। 2. शीलसम्पन्न, बलसम्पन्न न---कोई पुरुष शीलसम्पन्न होता है, किन्तु बलसम्पन्न नहीं होता। 3. बलसम्पन्न भी, शीलसम्पन्न भी-कोई पुरुष बलसम्पन्न भी होता है और शीलसम्पन्न भी होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org