________________ 254 ] | स्थानाङ्गसूत्र 4. अगुप्त होकर अगुप्त--कोई पुरुष न वस्त्र से ही गुप्त होता है और न उसकी इन्द्रियां गुप्त होती हैं (186) / १८७-चत्तारि कूडागारसालानो पण्णत्तानो, तं जहा—गुत्ता णाममेगा गुत्तदुवारा, गुत्ता णाममेगा अगुत्तदुवारा, अगुत्ता णाममेगा गुत्तदुवारा, अगुत्ता णाममेगा अगुत्तदुवारा / एवामेव चत्तारित्थोत्रो पण्णताओ, तं जहा~ गुत्ता णाममेगा गुत्तिदिया, गुत्ता णाममेगा अत्तिदिया, अगुत्ता णाममेगा त्तिदिया, अगुत्ता णाममेगा प्रतिदिया। चार प्रकार की कूटागार-शालाएं कही गई हैं, जैसे-- 1. गुप्त होकर गुप्तद्वार-कोई कूटागार-शाला परकोटे से गुप्त और गुप्त द्वार वाली होती है। 2. गुप्त होकर अगुप्तद्वार-कोई कूटागार-शाला परकोटे से गुप्त, किन्तु अगुप्त द्वारवाली होती है / 3. अगुप्त होकर गुप्तद्वार-कोई कूटागार-शाला परकोटे से अगुप्त, किन्तु गुप्तद्वार वाली होती है / 4. अगुप्त होकर अगुप्तद्वार-कोई कूटागार-शाला न परकोटे वाली होती है और न उसके द्वार ही गुप्त होते हैं। इसी प्रकार स्त्रियां भी चार प्रकार की कही गई हैं, जैसे 1. गुप्त होकर गुप्तेन्द्रिय-कोई स्त्री वस्त्र से भी गुप्त होती है और गुप्त इन्द्रिय वाली भी होती है। 2. गुप्त होकर अगुप्तेन्द्रिय-कोई स्त्री वस्त्र से गुप्त होकर भी गुप्त इन्द्रियवाली नहीं होती। 3. अगुप्त होकर गुप्तेन्द्रिय-कोई स्त्री वस्त्र से अगुप्त होकर भी गुप्त इन्द्रियवाली होती है। 4. अगुप्त होकर अगुप्तेन्द्रिय-कोई स्त्री न वस्त्र से गुप्त होती है और न उसकी इन्द्रियां ही गुप्त होती है (187) / अवगाहना सूत्र १८८-चउविहा प्रोगाहणा पण्णत्ता, तं जहा–दव्वोगाहणा, खेत्तोगाहणा, कालोगाहणा, भावोगाहणा। अवगाहना चार प्रकार की कही गई है, जैसे१. द्रव्यावगाहना, 2. क्षेत्रावगाहना, 3. कालावगाहना, 4. भावावगाहना (188) / विवेचन-जिसमें जीवादि द्रव्य अवगाहान करें, रहें या आश्रय को प्राप्त हों, उसे अवगाहना कहते हैं। जिस द्रव्य का जो शरीर या प्रकार है, वही उसकी द्रव्यावगाहना है। अथवा विवक्षित द्रव्य के आधारभूत आकाश-प्रदेशों में द्रव्यों की जो अवगाहना है, वही द्रव्यावगाहना है। इसी प्रकार आकाशरूप क्षेत्र को क्षेत्रावगाहना, मनुष्यक्षेत्ररूप समय की अवगाहना को कालावगाहना और भाव (पर्यायों) वाले द्रव्यों की अवगाहना को भावावगाहना जानना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org