________________ चतुर्थ स्थान-द्वितीय उद्देश ] [ 313 ३४७–तत्थ णं जे से दाहिणपच्चथिमिल्ले रतिकरगपन्वते, तस्स णं चउदिसि सक्कस्स देविंदस्स देवरणो च उण्हमग्गमहिसोणं जंबुद्दोवपमाणमेत्तानो चत्तारि रायहाणीमो पण्णत्तामो, त जहा-भूता, भूतवडेसा, गोथूभा, सुदंसणा / अमलाए, अच्छराए, णवमियाए, रोहिणीए / उन चारों रतिकरों में जो दक्षिण-पश्चिम दिशा का रतिकर पर्वत है, उसकी चारों दिशाओं में देवराज शक्र देवेन्द्र की चार अग्रम हिषियों की जम्बूद्वीप प्रमाणवालो चार राजधानियां कही गई हैं। जैसे 1. अमला अग्रमहिषी की राजधानी भूता। 2. अप्सरा अनमहिषी को राजधानी भूतावतंसा / 3. नवमिका अग्रमहिषी को राजधानी गोस्तुपा / 4. रोहिणी अग्रमहिषो की राजधानी सुदर्शना (347) / ३४८-तत्थ गंजे से उत्तरपच्चथिमिल्ले रतिकरगपवते, तस्स णं च उद्दिसिमोसाणस्स देविदस्स देवरण्णो चउण्हमगमहिसीणं जंबुद्दीवप्पमाणमेत्तानो चत्तारि रायहाणीनो पण्णत्तानो, त जहारयणा, रतणुच्चया, सवरतणा, रतणसंचया / वसूए, वसुगुत्ताए, वसुमित्ताए, वसुधराए। उन चारों रतिकरों में जो उत्तर-पश्चिम दिशा का रतिकर पर्वत है, उसकी चारों दिशाओं में देवराज ईशान देवेन्द्र की चार अग्रमहिषियों की जम्बूद्वीप प्रमाणवाली चार राजधानियां कही गई हैं / जैसे 1. वसु अग्रमहिषी की राजधानी रत्ना / 2. वसुगुप्ता अग्रमहिषी की राजधानी रत्नोचचया / 3. वसुमित्रा अग्रमहिषी की राजधानी सर्वरत्ना। 4. वसुन्धरा अनमहिषी की राजधानी रत्नसंचया (348) / सत्य-सूत्र ३४६-चउविहे सच्चे पण्णत्ते, त जहा–णामसच्चे, वणसच्चे, दवसच्चे, भावसच्चे। सत्य चार प्रकार का कहा गया है / जैसे१. नामसत्य-नाम निक्षेप की अपेक्षा किसी व्यक्ति का रखा गया 'सत्य' ऐसा नाम / 2. स्थापनासत्य-किसी वस्तु में आरोपित सत्य या सत्य की संकल्पित मूर्ति / 3. द्रव्यसत्य-सत्य का ज्ञायक, किन्तु अनुपयुक्त (सत्य संबंधी उपयोग से रहित) पुरुष / 4. भावसत्य-सत्य का ज्ञाता और उपयुक्त (सत्यविषयक उपयोग से युक्त) पुरुष (346) / आजीविक तप-सूत्र ३५०--प्राजीवियाणं चउदिवहे तवे पण्णत्ते, त जहा-उग्गतवे, घोरतवे, रसणिज्जहणता, जिभिदियपडिसंलोणता। आजीविकों (गोशलक के शिष्यों) का तप चार प्रकार का कहा गया है। जैसे१. उग्रतप-षष्ठभक्त, (उपवास) वेला, तेला आदि करना / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org