________________ 322] [ स्थानाङ्गसूत्र युग्म-सूत्र ३६४.–चत्तारि जुम्मा पण्णत्ता, तं जहा–कडजुम्मे, तेयोए, दावरजुम्मे, कलिनोए। युग्म (राशि-विशेष) चार प्रकार का कहा गया है / जैसे१. कृतयुग्म—जिस राशि में चार का भाग देने पर शेष कुछ न रहे, वह कृतयुग्म राशि है। जैसे-१६ का अंक / 2. व्योज-जिस राशि में चार का भाग देने पर तीन शेष रहें वह ज्योज राशि है / जैसे-१५ का अंक। 3. द्वापरयुग्म—जिस राशि में चार का भाग देने पर दो शेष रहें, वह द्वापरयुग्म राशि है। जैसे-१४ का अंक / 4. कल्योज-जिस राशि में चार का भाग देने पर एक शेष रहे, वह कल्योज राशि है / जैसे–१३ का अंक (364) / ३६५–णेरइयाणं चत्तारि जुम्मा पण्णत्ता, त जहा—कडजुम्मे, तेश्रोए, दावरजुम्मे, कलिनोए। नारक जीव चारों प्रकार के बुग्मवाले कहे गये हैं / जैसे१. कृतयुग्म, 2. योज, 3. द्वापरयुग्म, 4. कल्योज (365) / ३६६-एवं--असुरकुमाराणं जाव थणियकुमाराणं। एवं-पुढविकाइयाणं प्राउ-तेउ-बाउवणस्सतिकाइयाणं बंदियाणं तेदियाणं चरिदियाणं पंचिदियतिरिक्ख-जोणियाणं मणुस्साणं वाणमंतरजोइसियाणं वेमाणियाणं-सव्वेसि जहा गैरइयाणं / इसी प्रकार असुरकुमारों से लेकर स्तनितकुमारों तक, इसी प्रकार पृथिवी, अप, तेज, वायु, वनस्पतिकायिकों के, द्वीन्द्रियों के, त्रीन्द्रियों के, चतुरिन्द्रियों के, पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों के, मनुष्यों के, वानव्यन्तरों के, ज्योतिष्कों के और वैमानिकों के सभी के नारकियों के समान चारों युग्म कहे गये हैं (366) / विवेचन-सभी दण्डकों में चारों युग्मराशियों के जीव पाये जाने का कारण यह है कि जन्म और मरण की अपेक्षा इनकी राशि में हीनाधिकता होती रहती है, इसलिए किसी समय विवक्षितराशि कृतयुग्म पाई जाती है, तो किसी समय त्र्योज आदि राशि पाई जाती है / शूर-सूत्र ३६७–चत्तारि सूरा पण्णत्ता, त जहा-तवसूरे, खंतिसूरे, दाणसूरे, जुद्धसूरे / खंतिसूरा अरहंता, तवसूरा अणगारा, दाणसूरे वेसमणे, जुद्धसूरे वासुदेवे / शूर चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. क्षान्ति या शान्ति शूर, 2. तपःशूर, 3. दानशूर, 4. युद्धशूर / 1. अर्हन्त भगवन्त क्षान्तिशूर होते हैं। 2. अनगार साधु तप:शूर होते हैं। देव दानशूर होते हैं। 4. वासुदेव युद्धशूर होते हैं (367) / 3. वैश्रवण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org