________________ चतुर्थ स्थान-तृतीय उद्देश ] [ 321 1. जहां वह अपने भार को एक कन्धे से दूसरे कन्धे पर रखता है, वह उसका पहला आश्वास कहा गया है। 2. जहां वह अपना भार भूमि पर रख कर मल-मूत्र का विसर्जन करता है, वह उसका दूसरा आश्वास कहा गया है / 3. जहां वह किसी नागकुमारावास या सुपर्णकुमारावास आदि देवस्थान पर रात्रि में बसता है, वह तीसरा आश्वास कहा गया है / 4. जहां वह भार-वहन से मुक्त होकर यावज्जीवन (स्थायी रूप से) रहता है, वह चौथा पाश्वास कहा गया है। इसी प्रकार श्रमणोपासक (श्रावक) के चार अाश्वास कहे गये हैं / जैसे१. जिस समय वह शीलवत, गुणव्रत, पाप-विरमण, प्रत्याख्यान और पोषधोपवास को स्वीकार करता है, तब वह उसका पहला आश्वास होता है। 2. जिस समय वह सामायिक और देशावकाशिक व्रत का सम्यक् प्रकार से परिपालन करता है, तब वह उसका दसरा पाश्वास है। 3. जिस समय वह अष्टमी, चतुर्दशी, अमावस्या और पूर्णमासी के दिन परिपूर्ण पोषध का सम्यक् प्रकार परिपालन करता है, तब वह उसका तीसरा आश्वास कहा गया है। 4. जिस समय वह जीवन के अन्त में अपश्चिम मारणान्तिक संलेखना की आराधना से युक्त होकर भक्त-पान का त्याग कर पादोपगमन संन्यास को स्वीकार कर मरण की आकांक्षा नहीं करता हया समय व्यतीत करता है, वह उसका चौथा प्राश्वास कहा गया उदित-अस्तमित-सूत्र ३६३–चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-उदितोदिते णाममेगे, उदितस्थामते णाममेगे, अत्यमितोदिते णाममेगे, प्रत्थमितत्थमिते णाममेगे / भरहे राया चाउरंतचक्कवट्टी णं उदितोदिते, बंभदत्त गं राया चाउरंतचक्कवट्टी उदितत्थमिते, हरिएसबले णं अणगारे प्रत्थमितोदिते, काले णं सोयरिये प्रथमितस्थमिते। पुरुष चार प्रकार के होते हैं। जैसे--- 1. उदितोदित---कोई पुरुष प्रारम्भ में उदित (उन्नत) होता है और अन्त तक उन्नत रहता है / जैसे चातुरन्त चक्रवर्ती भरत राजा। 2. उदितास्तमित----कोई पुरुष प्रारम्भ से उन्नत होता है, किन्तु अन्त में अस्तमित होता है। अर्थात् सर्वसमृद्धि से भ्रष्ट होकर दुर्गति का पात्र होता है जैसे-चातुरन्त चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त राजा। 3. अस्तमितोदित-कोई पुरुष: प्रारम्भ में सम्पदा-विहीन होता है, किन्तु जीवन के अन्त में उन्नति को प्राप्त करता है / जैसे-हरिकेशबल अनगार / 4. अस्तमितास्तमित-कोई पुरुष प्रारम्भ में भी सुकुलादि से भ्रष्ट और जीवन के अन्त में भी दुर्गति का पात्र होता है। जैसे कालशौकरिक (363) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org