________________ 266] [ स्थानाङ्गसूत्र उदीरणोपक्रम चार प्रकार का कहा गया है / जैसे--- 1. प्रकृति-उदीरणोपक्रम, 2. स्थिति-उदीरणोपक्रम, 3. अनुभाव-उदीरणोपक्रम, 4. प्रदेश-उदीरणोपक्रम (263) / २६४-उवसामणोवक्कम चउठिवहे पण्णत्त, त जहा-पगतिउवसामणोवक्कम, ठितिउवसामणोबक्कम , अणुभावउवसामणोवक्कम, पदेसउवसामणोवक्कम / उपशामनोपक्रम चार प्रकार का कहा गया है / जैसे१. प्रकृति-उपशामनोपक्रम, 2. स्थिति-उपशामनोपक्रम, 3. अनुभाव -उपशामनोपक्रम, 4. प्रदेश-उपशामनोमपक्रम / (264) २६५–विप्परिणामणोवक्कम चउविहे पण्णत्त, त जहा-पगतिविप्परिणामणोवक्कम, ठितिविप्परिणामणोवक्कम, अणुभावविप्परिणामणोवक्कम, पएसविप्परिणामणोवक्कम / विपरिणामनोपक्रम चार प्रकार का कहा गया है / जैसे१. प्रकृति-विपरिणामनोपक्रम, 2. स्थिति-विपरिणापनोक्रम / 3. अनुभाव-विपरिणामनोपक्रम, 4. प्रदेश- विपरिणामनोपक्रम (265) / २९६-चउविहे अप्पाबहुए पण्णत्ते, त जहा--पगतिअप्पाबहुए, ठितिअप्पाबहुए, अणुभावअप्पाबहुए, पएसअप्पाबहुए। अल्पबहुत्व चार प्रकार का कहा गया है / जैसे१. प्रकृति-अल्पबहुत्व, 2. स्थिति-अल्पबहुत्व, 3. अनुभाव-अल्पबहुत्व 4. प्रदेश अल्पबहुत्व (266) / २६७-चउबिहे संकम पण्णत्त, त जहा---पगतिसंकम, ठितिसंकम, अणुभावसंकम, पएससंकम। संक्रम चार प्रकार का कहा गया है / जैसे-- 1. प्रकृति-संक्रम, 2. स्थिति-संक्रम 3. अनुभाव-संक्रम, 4. प्रदेश-संक्रम / (297) २६८--चउविहे णिवत्तपण्णते, त जहा-पगतिणिवत्त, ढितिणिधत्त, अणुभावणिधत्त, पएसणिवत्त / निधत्त चार प्रकार का कहा गया है / जैसे--- 1. प्रकृति-निधत्त 2. स्थिति-निधत्त, 3. अनुभाव-निधत्त, 4. प्रदेश-निधत्त / (268) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org