________________ चतुर्थ स्थान-द्वितीय उद्देश ] [ 266 कालचक्र-सूत्र ३०४–जंबहीवे दीवे भरहेरवतेसु वासेसु तोताए उस्सप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए चत्तारि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो हुत्था / जम्बूद्वीपनामक द्वीप में भरत और ऐरवत क्षेत्रों में अतीत उत्सपिणी के 'सुषम-सुषमा' नामक आरे का काल-प्रमाण चार कोडाकोड़ी सागरोपम था (304) / ३०५-जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवतेसु वासेसु इमोसे प्रोसप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए चत्तारि सागरोवमकोडाकोडीग्रो कालो पण्णत्तो। जम्बूद्वीपक नामक द्वीप के भरत और ऐरक्त क्षेत्रों में इस अवसर्पिणी के 'सुषम-सुषमा' नामक पारे का काल-प्रमाण चार कोडाकोड़ी सागरोपम था (305) / ३०६-जंबुद्दीवे दोघे भरहेरवतेसु वासेसु प्रागमेस्साए उस्सप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए चत्तारि सागरोवमकोडाकोडीनो कालो भविस्सइ। जम्बूद्वीप नामक द्वीप के भरत और ऐरवत क्षेत्रों में आगामी उत्सर्पिणी के 'सुषम-सुषमा' नामक पारे का काल-प्रमाण चार कोडाकोड़ी सागरोपम होगा (306) / ३०७---जंबुद्दीवे दीवे देवकुरुउत्तरकुरुवज्जाओ चत्तारि अकम्मभूमोनो पण्णत्तानो, त जहा--हेमवते, हेरण्णवते, हरिवरिसे, रम्मगरिसे / चत्तारि वट्टवेयड्डपव्वता पण्णत्ता, तं जहा-सद्दावाती, वियडावाती, गंधावाती, मालवंतपरियाते / तत्य णं चत्तारि देवा महिड्डिया जाव पलिग्रोवमद्वितीया परिवसंति, तं जहा-साती, पभासे, अरुणे, पउमे। जम्बूद्वीप नामक द्वीप में देवकुरु और उत्तरकुरु को छोड़कर चार प्रकर्मभूमियां कही गई हैं / जैसे---१. हैमवत, 2. हैरण्यवत, 3. हरिवर्ष, 4. रम्यकवर्ष / . उनमें चार वैताढ्य पर्वत कहे गये हैं / जैसे---- 1. शब्दापाती, 2. विकटापाती, 3. गन्धापाती, 4. माल्यवत्पर्याय / उन पर पल्योपम की स्थिति वाले यावत् महद्धिक चार देव रहते हैं / जैसे 1. स्वाति, 2. प्रभास, 3. अरुण, 4. पद्म (307) / महाविदेह-सूत्र ३०८-जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे चउविहे पण्णते, तं जहा-पुन्वविदेहे, प्रवरविदेहे, देवकुरा उत्तरकुरा। जम्बूद्वीप नामक द्वीप में महाविदेह क्षेत्र चार प्रकार का अर्थात् चार भागों में विभक्त कहा गया है। जैसे-- 1. पूर्वविदेह, 2. अपरविदेह, 3. देवकुरु, 4. उत्तरकुरु (308) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org