________________ चतुर्थ स्थान-द्वितीय उद्देश ] [ 303 तेसु णं दीवेसु चउम्विधा मणुस्सा परिवसंति, तं जहा-हयकण्णा, गयकण्णा, गोकण्णा, सक्कुलिकण्णा। उन उपयुक्त अन्तर्वीपों की चारों विदिशाओं से लवण समुद्र के भीतर चार-चार सौ योजन जाने पर चार अन्तर्वीप कहे गये हैं / जैसे 1. हयकर्ण द्वीप, 2. गजकर्ण द्वीप, 3. गोकर्ण द्वीप, 4. शष्कुलीकर्ण द्वीप / उन अन्तर्वीपों पर चार प्रकार के मनुष्य रहते हैं। जैसे-. 1. हयकर्ण, 2. गजकर्ण, 3. गोकर्ण, 4. शष्कुलोकर्ण (322) / ३२३–तेसि णं दीवाणं चउसु विदिसासु लवणसमुई पंच-पंच जोयणसयाई प्रोगाहित्ता, एत्थ णं चत्तारि अंतरदीवा पण्णता, तं जहा--प्रायंसमुहदीवे, मेंढमुहदीवे, अनोमुहदीवे, गोमुहदीवे / तेसु णं दीवेसु चउविहा मणुस्सा भाणियव्वा / [परिवसंति, तं जहा–प्रायंसमुहा, मेंढमुहा, अओमुहा गोमुहा] / उन अन्तर्वीपों की चारों विदिशाओं में लवण समुद्र के भीतर पांच-पांच सौ योजन जाने पर चार अन्तर्वीप कहे गये हैं। जैसे 1. आदर्शमुख द्वीप, 2. मेषमुख द्वीप, 3. अयोमुख द्वीप, 4. गोमुख द्वीप / उन द्वीपों पर चार प्रकार के मनुष्य रहते हैं / जैसे१. आदर्शमुख, 2. मेषमुख, 3. अयोमुख,' 4. गोमुख (323) / ३२४--तेसि णं दीवाणं चउसु विदिसासु लवणसमुई छ-छ जोयणसयाई प्रोगाहेत्ता, एत्य गं चत्तारि अंतरदीवा पण्णत्ता, तं जहा-प्रासमुहदीवे, हस्थिमुहदीवे, सोहमुहदीवे, वग्धमुहदीवे। तेसु णं दीवेसु चउम्विहा मणुस्सा भाणियव्वा [परिवसंति, तं जहा-प्रासमुहा, हस्थिमुहा, सोहमुहा, वग्घमुहा] / उन द्वीपों की चारों विदिशाओं में लवणसमुद्र के भीतर छह-छह सौ योजन जाने पर चार अन्तद्वीप कहे गये हैं जैसे 1. अश्वमुख द्वीप 2. हस्तिमुख द्वीप 3. सिंहमुख द्वीप 4. व्याघ्रमुख द्वीप / उन द्वीपों पर चार प्रकार के मनुष्य रहते हैं। जैसे१. अश्वमुख 2. हस्तिमुख 3. सिंहमुख 4. व्याघ्रमुख (324) / ३२५–तेसि णं दीवाणं चउसु विदिसासु लवणसमुदं सत्त-सत्त जोयणसयाई ओगाहेत्ता, एत्थ णं चत्तारि अंतरदीवा, पण्णत्ता, तं जहा-प्रासकण्णदीवे, हस्थिकण्णदीवे, प्रकण्णदीवे, कण्णपाउरणदीवे / तेसु णं दीवेसु चउन्विहा मणुस्सा भाणियव्वा [परिवसंति, तं जहा–प्रासकण्णा, हत्थिकण्णा, प्रकण्णा, कण्णपाउरणा] / 1. प्रपोमुहा के स्थान पर अप्रामुह (अजामुख) पाठ भी है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org