________________ 310] [ स्थानाङ्गसूत्र ३४०-तत्थ णं जे से पुरथिमिल्ले अंजणगपन्वते, तस्स णं चउद्दिसि चत्तारि गंदानो पुक्खरिणीप्रो पण्णत्तानो, तजहा--णंदुत्तरा, गंदा, पाणंदा, णदिवद्धणा / ताप्रोणं गंदामो पुक्ख. रिणीप्रो एगं जोयणसयसहस्सं आयामेणं, पण्णासं जोयणसहस्साई विक्खंभेणं, दसजोयणसताई उन्वेहेणं। तासि णं पुक्खरिणीणं पत्तेयं-पत्तेयं चउद्दिसि चत्तारि तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता। तेसि णं तिसोवाणपडिरूवगाणं पुरतो चत्तारि तोरणा पण्णता, त जहा-पुरथिमे णं, दाहिणे णं, पच्चस्थिमें णं, उत्तरे गं / तासि णं पुक्खरिणोणं पत्तेयं-पत्तेयं चउद्दिस चत्तारि वणसंडा पण्णता, तंजहा-पुरतो, दाहिणे णं, पच्चत्यिमेणं उत्तरे थे / संग्रहणी-गाथा पुग्वे णं असोगवणं, दाहिणो होइ सत्तवण्णवणं / प्रवरे णं चंपगवणं, चूयवणं उत्तरे पासे // 1 // तासि णं पुक्खरिणीण बहुमज्झदेसभागे चत्तारि दधिमूहगपध्वया पण्णत्ता। ते णं दधिमुहगपब्वया चउद्धि जोयणसहस्साई उद्धृ उच्चत्तेणं, एगं जोयणसहस्सं उन्हेणं, सव्वत्थ समा पल्लगसंठाणसंठिता, दस जोयणसहस्साई विक्संमेणं, एक्कतीसं जोयणसहस्साई छच्च तेवीसे जोयणसते परिक्खेवेणं; सम्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा। तेसि णं दधिमुहगपध्वताणं उरि बहसमरमणिज्जा भूमिभागा पण्णत्ता। सेसं जहेव अंजणगपन्वताणं तहेव णिरवसेसं भाणियच्वं जाव चूतवणं उत्तरे पासे / उन पूर्वोक्त चार अंजन पर्वतों में से जो पूर्व दिशा का अंजन पर्वत है, उसकी चारों दिशाओं में चार नन्दा (आनन्द-दायिनी) पुष्करिणियां कही गई हैं / जैसे 1. नन्दोत्तरा, 2. नन्दा, 3, आनन्दा, 4. नन्दिवर्धना। वे नन्दा पुष्करिणियाँ एक लाख योजन लम्बी, पचास हजार योजन चौड़ी और दश सौ (एक हजार) योजन गहरी हैं। उन नन्दा पुष्करिणियों में से चारों दिशाओं में तोन-तीन सोपान (सीढ़ी) वाली चार सोपानपंक्तियां कही गई हैं। उन त्रि-सोपान पंक्तियों के आगे चार तोरण कहे गये है। जैसे-पूर्व में, दक्षिण में, पश्चिम में, उत्तर में / उन नन्दा पुष्करिणियों में से प्रत्येक के चारों दिशाओं में चार बनषण्ड हैं। जैसे—पूर्व में, दक्षिण में, पश्चिम में, उत्तर में / 1. पूर्व में अशोकवन, 2. दक्षिण में सप्तपर्णवन, 3. पश्चिम में चम्पकवन और उत्तर में आम्रवन कहा गया है। उन पुष्करिणियों के बहुमध्यदेश भाग में चार दधिमुख पर्वत हैं। वे दधिमुखपर्वत ऊपर 64 हजार योजन ऊंचे और नीचे एक हजार योजन गहरे हैं। वे ऊपर, नीचे और मध्य में सर्वत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org