________________ 288 ] [स्थानाङ्गसूत्र २७३–चत्तारि वणसंडा पण्णत्ता, तं जहा-वामे गाममेगे वामावत्ते, वामे णामोंगे दाहिणावत्ते, दाहिणे णाममेगे वामावत्ते, दाहिणे णाममेगे दाहिणावत्ते। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा–बामे णाममेगे वामावत्ते, वामे गाममेगे दाहिणावत्ते, दाहिणे णाममेगे वामावत्ते, दाहिणे णाममेगे दाहिणावत्ते / वनषण्ड (उद्यान) चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे--- 1. वाम और वामावर्त-कोई वनषण्ड वाम और वामावर्त होता है। 2. वाम और दक्षिणावर्त--कोई वनषण्ड वाम, किन्तु दक्षिणावर्त होता है / 3. दक्षिण और वामावर्त---कोई वनषण्ड दक्षिण और वामावर्त होता है। 4. दक्षिण और दक्षिणावर्त—कोई वनषण्ड दक्षिण और दक्षिणावर्त होता है / इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. वाम और वामावर्त-कोई पुरुष वाम और वामावर्त होता है। 2. वाम और दक्षिणावर्त-कोई पुरुष वाम, किन्तु दक्षिणावर्त होता है। 3. दक्षिण और वामावर्त-कोई पुरुष दक्षिण, किन्तु वामावर्त होता है। 4. दक्षिण और दक्षिणावर्त-कोई पुरुष दक्षिण और दक्षिणावर्त होता है (273) / निग्रन्थ-निर्गन्थी-सूत्र २७४–चउहि ठाणेहि णिग्गंथे णिथि पालवमाणे वा संलवमाणे वा णातिक्कमति, तं जहा–१. पंथं पुच्छमाणे वा, 2. पंथं देसमाणे वा, 3. असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा दलेमाणे वा, 4. असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइम वा, दलावेमाणे वा / निर्गन्थ चार कारणों से निर्ग्रन्थी के साथ पालाप-संलाप करता हुआ निम्रन्थाचार का उल्लंघन नहीं करता है। जैसे१. मार्ग पूछता हुआ। 2. मार्ग बताता हुआ। 3. अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य देता हुआ / 4. गृहस्थों के घर से अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य दिलाता हुआ (274) / तमस्काय-सूत्र २७५-तमुक्कायस्स पं चत्तारि णामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा–तमति वा, तमुक्काएति वा, अंधकारेति वा, महंधकारेति वा। तमस्काय के चार नाम कहे गये हैं / जैसे-- 1. तम, 2. तमस्काय, 3. अन्धकार, 4. महान्धकार (275) / २७६-तम क्कायस्स णं चत्तारि णामधेज्जा पणत्ता, तं जहा-लोगंधगारेति वा, लोगतमसेति वा, देवंधगारेति वा देवतमसेति वा / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org