________________ चतुर्थ स्थान-द्वितीय उद्देश ] [ 287 एवाम व चत्तारि इत्थीयो पण्णतायो, त जहा–वामा णामम गा वामावत्ता, वामा णाममे गा दाहिणावत्ता, दाहिणा णाममगा वामावत्ता, दाहिणा णामम गा दाहिणावत्ता / अग्नि-शिखाएं चार प्रकार की कही गई हैं / जैसे-- 1. वामा और वामावर्ता—कोई अग्नि-शिखा वाम और वामावर्त होती है। 2. वामा और दक्षिणावर्ता--कोई अग्नि-शिखा वाम, किन्तु दक्षिणावर्त होती है / 3. दक्षिण। और वामावर्ता-कोई अग्नि-शिखा दक्षिण, किन्तु वामावर्त होती है। 4. दक्षिणा और दक्षिणावर्ता-कोई अग्नि-शिखा दक्षिण और दक्षिणावर्त होती है / इसी प्रकार स्त्रियां भी चार प्रकार की कही गई हैं। जैसे१. वामा और वामावर्ता—कोई स्त्री वाम और वामावर्त होती है / 2 वामा और दक्षिणावर्ता---कोई स्त्री वाम, किन्तु दक्षिणावर्त होती है / 3. दक्षिणा और वामावर्ता-कोई स्त्री दक्षिण, किन्तु वामावर्त होती है। 4. दक्षिणा और दक्षिणावर्ता-कोई स्त्री दक्षिण और दक्षिणावर्त होती है (271) / २७२-चत्तारि वायमंडलिया पण्णत्ता, तं जहा-वामा णाममेगा वामावत्ता, वामा णाममेगा दाहिणावत्ता, दाहिणा णाममेगा वामावत्ता, दाहिणा णाममेगा दाहिणावत्ता।। एवामेव चत्तारि इत्थीग्रो पण्णत्तानो. तं जहा–वामा णाममेगा वामावत्ता, वामा णाममेगा दाहिणावत्ता, दाहिणा णाममेगा वामावत्ता, दाहिणा णाममेगा दाहिणावत्ता / वात-मण्डलिकाएं चार प्रकार की कही गई हैं / जैसे१. वामा और वामावर्ता-कोई वात-मण्डलिका वाम और वामावर्त होती है / 2. वामा और दक्षिणावर्ता-कोई वात-मण्डलिका वाम, किन्तु दक्षिणावर्त होती है / 3. दक्षिणा और वामावर्ता--कोई वात-मण्डलिका दक्षिण, किन्तु वामावर्त होती है / 4. दक्षिणा और दक्षिणावर्ता—कोई वात-मण्डलिका दक्षिण और दक्षिणावर्त होती है। इसी प्रकार स्त्रियां भी चार प्रकार की कही गई हैं / जैसे१. वामा और वामावर्ता–कोई स्त्री वाम और वामावर्त होती है। 2. वामा और दक्षिणावर्ता-कोई स्त्री वाम, किन्तु दक्षिणावर्त होती है / 3. दक्षिणा और वामावर्ता--कोई स्त्री दक्षिण, किन्तु वामावर्त होती है। 4. दक्षिणा और दक्षिणावर्ता--कोई स्त्री दक्षिण और दक्षिणावर्त होती है (272) / विवेचन-उपर्युक्त तीन सूत्रों में क्रमशः धुम-शिखा, अग्निशिखा और वात-मण्डलिका के चार-चार प्रकारों का, तथा उनके दान्ति स्वरूप चार-चार प्रकार की स्त्रियों का निरूपण किया गया है। जैसे धूम-शिखा मलिन स्वभाववाली होती है, उसी प्रकार मलिन स्वभाव की अपेक्षा स्त्रियों के चारों भागों को घटित करना चाहिए। इसी प्रकार अग्नि-शिखा के सन्ताप-स्वभाव और वात-मण्डलिका के चपल-स्वभाव के समान स्त्रियों की सन्ताप-जनकता और चंचलता स्वभावों की अपेक्षा चार-चार भंगों को घटित करना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org