________________ चतुर्थ स्थान---द्वितीय उद्देश ] [ 285 इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे 1. क्षेम और क्षेम-कोई पुरुष आदि में क्षेम क्रोधादि (उपद्रव से रहित) होता है और अन्त में भी क्षेम होता है। 2. क्षेम और अक्षेमकोई पुरुष आदि में क्षेम होता है, किन्तु अन्त में अक्षेम होता है / 3. अक्षेम और क्षेम-कोई पुरुष आदि में अक्षम होता है किन्तु अन्त में क्षेम होता है। 4. अक्षेम और अक्षेम---कोई पुरुष आदि में भी प्रक्षेम होता है और अन्त में भी अक्षेम होता है (267) / उक्त चारों भंगों की बाहर से क्षमाशील और अंतरंग से भी क्षमाशील, तथा बाहर से क्रोधी और अन्तरंग से भी क्रोधी इत्यादि रूप में व्याख्या समझनी चाहिए। इस व्याख्या के अनुसार प्रथम भंग में द्रव्य-भावलिंगी साधु, दूसरे में द्रव्यलिंगी साधु, तीसरे में निह्नव और चौथे में अन्यतीर्थिकों का समावेश होता है / आगे भी इसी प्रकार जानना चाहिए। __२६८-चत्तारि मग्गा पण्णता, त जहा खेमे गाममे गे खेमरूवे, खेम णाममे गे अखेमरूवे, अखेम णाममग खेमरूवे, अखेमे णाममे गे अखेमरूवे / एबाम व चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-खेम णाममग खेमरूवे, खेम णाममेगे अखेमरूवे, अखेम णाममे गे खेमरूवे. अखेम णाममग अखेमरूवे / पुनः मार्ग चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. क्षेम और क्षेमरूप--कोई मार्ग क्षेम और क्षेम रूप (आकार) वाला होता है / 2. क्षेम और अक्षेमरूप-कोई मार्ग क्षेम, किन्तु अक्षेमरूप वाला होता है। 3. अक्षेम और क्षेमरूप--कोई मार्ग अक्षेम, किन्तु क्षेमरूप वाला होता है / 4. अक्षेम और अक्षेमरूप-कोई मार्ग प्रक्षेम और अक्षेमरूप वाला होता है / इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. क्षेम और क्षेमरूप-कोई पुरुष क्षेम और क्षेम रूपवाला होता है। 2. क्षेम और अक्षेमरूप--कोई पुरुष क्षेम, किन्तु अक्षेम रूपवाला होता है। 3. अक्षेम और क्षेमरूप-कोई पुरुष अक्षेम, किन्तु क्षेमरूप वाला होता है / 4. अक्षेम और अक्षेमरूप-कोई पुरुष प्रक्षेम और अक्षेमरूप वाला होता है (268) / वाम-दक्षिण-सूत्र २६६-चत्तारि संवुक्का पण्णत्ता, तं जहा-वाम गाममे गे वामावत्ते, वाम णाममंगे दाहिणावत्ते, दाहिणे णाममे गे वामावत्ते, दाहिणे णाममे गे दाहिणावत्ते। ___ एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, त जहावाम गाममे गे वामावत्ते, वाम णाममंगे दाहिणावत्ते, दाहिणे णाममे गे वामावत्ते. दाहिणे णाममे गे दाहिणावत्ते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org