________________ [ 256 चतुर्थ स्थान-द्वितीय उद्देश] 3. अदीन और दीनदृष्टि-कोई पुरुष दीन नहीं होकर भी दीनदृष्टि वाला होता है। 4. अदीन और अदीनदृष्टि-कोई पुरुष न दीन है और न दीनदृष्टिवाला होता है (200) / २०१---चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, त जहा-दोणे णाममेगे दोण सोलाचारे, दोणे णाममेगे अदोणसोलाचारे, प्रदोणे णाममेगे दोणसीलाचारे, प्रदोणे णाममेगे अदोणसीलाचारे। पुन: पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे-- 1. दीन और दीन शीलाचार-कोई पुरुष दीन है और दीन शील-प्राचार वाला है। 2. दीन और अदीन शीलाचार-कोई पुरुष दीन होकर भी दीन शील-याचार वाला नहीं होता। 3. अदीन और दीन शीलाचार--कोई पुरुष दीन नहीं होकर भी दोन शील-प्राचार वाला होता है। 4. अदीन और अदीन शीलाचार-कोई पुरुष न दीन है और न दोन शोल-प्राचार वाला होता है (201) / २०२–चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, त जहा—दोणे णाममेगे दोणववहारे, दोणे णाममेगे प्रदोणववहारे, प्रदीणे णाममेगे दोणववहारे, अदीणे णाममेगे अदोणववहारे / पुन: पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे-- 1. दीन और दीन व्यवहार--कोई पुरुष दोन है और दोन व्यवहारवाला होता है। 2. दीन और अदीन व्यवहार कोई पुरुष दीन होकर भी दीन व्यवहारवाला नहीं होता। 3. अदीन और दीन व्यवहार-कोई पुरुष दोन नहीं होकर भो दोन व्यवहारवाला होता है। 4. अदीन और अदीन व्यवहार –कोई पुरुष न दोन है और न दोन व्यवहारवाला होता है (202) / २०३–चत्तारि पुरिसजाया पणता, त जहा-दोणे णामतो दोगारककरे, दोगे जामनगे प्रदोणपरक्कमे, (अदोणे णाममेगे दोगपरक्कमे, प्रदोणे णाम मेगे अदोणपरक्कमे / ) पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. दोन और दीनपराक्रम- कोई पुरुष दीन है और दोन पराक्रमवाला भी होता है। 2. दीन और अदीनपराक्रम-कोई पुरुष दीन होकर भी दीन पराक्रमवाला नहीं होता। 3. अदीन और दीनपराक्रम-कोई पुरुष दीन नहीं होकर भी दीन पराक्रमवाला होता है। 4. अदीन और अदीनपराक्रम-कोई पुरुष न दोन है और न दोन पराक्रमवाला होता है (203) / २०४-चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, त जहा-दोणे गाममेगे दीवित्ती, दोणे णाममेगे अदोणवित्ती, प्रदीणे णाममेगे दोणवित्ती, प्रदीणे णाममेगे अदीणवित्ती। पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org