________________ चतुर्थ स्थान-द्वितीय उद्देश ] [273 4. जो ऊपर कहे हुए तीनों जाति के हाथियों के कुछ-कुछ लक्षणों का, रूप से और शील (स्वभाव) से अनुकरण करता हो, अर्थात् जिसमें भद्र, मन्द और मृग जाति के हाथी की कुछ-कुछ समानता पाई जावे, वह संकीर्ण हाथी कहलाता है। 5. भद्र हाथी शरद् ऋतु में मदयुक्त होता है, मन्द हाथी वसन्त ऋतु में मदयुक्त होता हैमद झरता है, मृग हाथी हेमन्त ऋतु में मदयुक्त होता है और संकीर्ण हाथी सभी ऋतुओं में मदयुक्त रहता है (240) / विकथा-सूत्र २४१-~~चत्तारि विकहानो पण्णतामो, तं जहा-इथिकहा, भत्तकहा, देसकहा, रायकहा। विकथा चार प्रकार की कही गई हैं। जैसे१. स्त्रीकथा, 2. भक्तकथा, 3. देशकथा, 4. राजकथा (241) / २४२–इथिकहा चउन्विहा पण्णत्ता, तं जहा-इत्थीणं जाइकहा, इत्थीणं कुलकहा, इत्थीणं रूवकहा, इत्थीणं णेवत्थकहा। स्त्री कथा चार प्रकार की कही गई है / जैसे--- 1. स्त्रियों की जाति की कथा, 2. स्त्रियों के कुल की कथा / 3. स्त्रियों के रूप की कथा, 4. स्त्रियों के नेपथ्य (वेष-भूषा) की कथा (242) / २४३-भत्तकहा चउविहा पण्णता, तं जहा-भत्तस्स प्रावावकहा, भत्तस्स णिव्वावकहा, भत्तस्स आरंभकहा, भत्तस्स णिट्ठाणकहा। भक्तकथा चार प्रकार की कही गई है, जैसे-- 1. पावापकथा-रसोई की सामग्रो आटा, दाल, नमक प्रादि की चर्चा करना। 2. निर्वापकथा--पके या बिना पके अन्न या व्यंजनादि की चर्चा करना। 3. प्रारम्भकथा-रसोई बनाने के लिए आवश्यक सामान और धन आदि की चर्चा करना। 4. निष्ठानकथा-रसोई में लगे सामान और धनादि की चर्चा करना (243) / २४४-देसकहा चउविवहा पण्णत्ता, तं जहा-देशविहिकहा, देसविकष्पकहा, देसच्छंदकहा, देसणेवत्थकहा। देशकथा चार प्रकार की कही गई है, जैसे१. देशविधिकथा विभिन्न देशों में प्रचलित विधि-विधानों की चर्चा करना। 2. देशविकल्पकथा-विभिन्न देशों के गढ़, परिधि, प्राकार आदि की चर्चा करना / 3. देशच्छन्दकथा--विभिन्न देशों के विवाहादि सम्बन्धी रीति-रिवाजों को चर्चा करना / 4. देशनेपथ्यकथा--विभिन्न देशों के वेष-भूषादि की चर्चा करना (244) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org