________________ 274 ] [ स्थानाङ्गसूत्र २४५-रायकहा चउन्विहा पण्णत्ता, तं जहा--रणो अतियाणकहा, रण्णो णिज्जाणकहा, रग्णो बलवाहणकहा, रणो कोसकोट्ठागारकहा। राजकथा चार प्रकार की कही गई है। जैसे१. राज-अतियान कथा-राजा के नगर-प्रवेश के समारम्भ की चर्चा करना / 2. राज-निर्याण कथा-राजा के युद्ध आदि के लिए नगर से निकलने की चर्चा करना / 3. राज-बल-वाहनकथा--राजा के सैन्य, सैनिक और वाहनों की चर्चा करना। 4. राज-कोष-कोष्ठागार कथा-राजा के खजाने और धान्य-भण्डार आदि की चर्चा करना विवेचन-कथा का अर्थ है---कहना, वार्तालाप करना। जो कथा संयम से विरुद्ध हो, विपरीत हो वह विकथा कहलाती है, अर्थात् जिससे ब्रह्मचर्य में स्खलना उत्पन्न हो, स्वादलोलुपता जागत हो, जिससे प्रारम्भ-समारम्भ को प्रोत्साहन मिले, जो एकनिष्ठ साधना में बाधक हो, ऐसा समग्र वार्तालाप विकथा में परिगणित है। उक्त भेद-प्रभेदों में सब प्रकार की विकथाओं का समावेश हो जाता है। कथा-सूत्र २४६.-चउन्विहा कहा पग्णत्ता, त जहा-अक्खेवणी, विक्खेवणी, संवेयणी, णिवेदणी। धर्मकथा चार प्रकार की कही गई है / जैसे१. आक्षेपणी कथा-ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप आदि के प्रति आकर्षण करने वाली कथा करना। 2. विक्षेपणी कथा-पर-मत का कथन कर स्व-मत की स्थापना करने वाली कथा करना। 3. संवेजनी या संवेदनी कथा-संसार के दुःख, शरीर की अशुचिता आदि दिखाकर वैराग्य उत्पन्न करने वाली चर्चा करना / 4. निवेदनी कथा-कर्मों के फल बतलाकर संसार से विरक्ति उत्पन्न करने वाली चर्चा करना (246) / २४७–प्रक्खेवणी कहा चविहा पण्णता, त जहा-प्रायारअक्खेवणी, ववहारप्रक्खेवणी, पण्णत्तिप्रक्खेवणी, दिट्टिवायप्रक्खेवणी / आक्षेपणी कथा चार प्रकार की कही गई है, जैसे१. आचाराक्षेपणी कथा-साधु और श्रावक के प्राचार की चर्चा कर उसके प्रति श्रोता को आकर्षित करना। 2. व्यवहाराक्षेपणी कथा-व्यवहार-प्रायश्चित्त लेने और न लेने के गुण-दोषों की चर्चा करना / 3. प्रज्ञप्ति-आक्षेपणी कथा-संशय-ग्रस्त श्रोता के संशय को दूरकर उसे संबोधित करना। 4. दृष्टिवादाक्षेपणी कथा विभिन्न नयों की दृष्टियों से श्रोता की योग्यतानुसार तत्त्व का निरूपण करना (247) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org