________________ चतुर्थ स्थान-द्वितीय उद्देश ] [ 271 २३८--चत्तारि हत्थी पण्णत्ता, तं जहा-मदे णाममेगे भद्दमणे, मंदे णाममे गे मंदमणे, मदे णाममगे मियमणे, मदे णाममे गे संकिण्णमणे / __ एवाम व चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-मदे णाममगे भद्दमणे, [मदे णाममंगे मदमणे, मदे णाममगे मियमणे, मदे णाममगे संकिण्णमणे] / पुनः हाथी चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. मन्द और भद्रमन-कोई हाथी जाति से मन्द, किन्तु भद्र मनवाला होता है 2. मन्द और मन्दमन-कोई हाथी जाति से मन्द और मन्द मनवाला होता है / 3. मन्द और मृगमन-कोई हाथी जाति से मन्द और मृग मनवाला होता है / 4. मन्द और संकीर्णमन-कोई हाथी जाति से मन्द और संकीर्ण मनवाला होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. मन्द और भद्रमन-कोई पुरुष स्वभाव से मन्द किन्तु भद्रमनवाला होता है / 2. मन्द और मन्दमन-कोई पुरुष स्वभाव से मन्द और मन्द ही मनवाला होता है / 3. मन्द और मृगमन-कोई पुरुष स्वभाव से मन्द और मृग मनवाला होता है। 4. मन्द और संकीर्णमन—कोई पुरुष स्वभाव से मन्द और संकीर्ण मनवाला होता है (238) / २३६–चत्तारि हत्थो पण्णत्ता, तं जहा–मिए णामम गे भद्दमणे, मिए णाममे गे मदमणे, मिए णाममगे मियमणे, मिए गाममे गे संकिण्णमणे। एवाम व चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–मिए णामम गे मद्दमणे, [मिए णाममे गे मदमणे, मिए णामम गे मियमणे, मिए णाममे गे संकिण्णमणे] / पुनः हाथी चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. मृग और भद्रमन- कोई हाथी जाति से मृग (भीरु) किन्तु भद्रमन वाला (धैर्यवान्) होता 2. मृग और मन्दमन -कोई हाथी जाति से मृग और मन्द मनवाला (कम धैर्यवाला) होता है। 3. मृग और मृगमन-कोई हाथी जाति से मृग और मृगमन वाला होता है।। 4. मृग और संकीर्णमन--कोई हाथी जाति से मृग और संकीर्ण मनवाला होता है / इसी प्रकार पुरुष भी चार जाति के कहे गये हैं। जैसे१. मृग और भद्रमन-कोई पुरुष स्वभाव से मृग, किन्तु भद्र मनवाला होता है / 2. मृग और मन्दमन-कोई पुरुष स्वभाव से मृग और मन्द मनवाला होता है / 3. मृग और मृगमन--कोई पुरुष स्वभाव से मृग और मृग मनवाला होता है। 4. मृग और संकीर्णमन-कोई पुरुष स्वभाव से मृग और संकीर्ण मनवाला होता है (236) / २४०-चत्तारि हत्थी पण्णत्ता, तं जहा--संकिण्णे णाममेगे भद्दमणे, संकिण्णे णाममेगे मंदमणे, संकिण्णे णाममे गे मियमणे, संकिण्णे णामम गे संकिण्णमणे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org