________________ चतुर्थ स्थान-द्वितीय उद्देश ] [ 257 _ विवेचन-मन, वचन, काय की प्रवृत्ति में संलग्न नहीं होकर उसका निरोध करना मन, वचन, काय की प्रतिसंलीनता है। पांच इन्द्रियों के विषयों में संलग्न नहीं होना इन्द्रिय-प्रतिसलीनता है। मन, वचन, काय की तथा इन्द्रियों के विषयों की प्रवृत्ति में संलग्न होना उनकी अप्रतिसंलीनता है। दोण-अदोण-सूत्र १९४–चत्तारि पुरिसजाया पणत्ता, त जहा दोणे णाममेगे दोणे, दीणे णाममेगे अदोणे, प्रदीणे गाममेगे दोणे, अदीणे णाममेगे अदीणे // 1 // पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे 1. दीन होकर दीन-कोई पुरुष बाहर से दीन (दरिद्र) है और भीतर से भी दीन (दयनीयमनोवृत्तिवाला) होता है। 2. दीन होकर अदीन कोई पुरुष बाहर से दीन, किन्तु भीतर से अदीन होता है / 3. अदीन होकर दीन-कोई पुरुष बाहर से अदीन, किन्तु भीतर से दीन होता है / 4. अदीन होकर अदीन-कोई पुरुष न बाहर से दोन होता है और न भीतर से दीन होता है (164) / १६५–चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा दीणे णाममेगे दोणपरिणते, दोणे णाममेगे अदीणपरिणते, प्रदीणे णाममेगे दोणपरिणते, प्रदीणे जाममेगे अदीणपरिणते // 2 // पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे - 1. दीन होकर दीन-परिणत-कोई पुरुष दीन है और बाहर से भी दीन रूप से परिणत होता है। 2. दीन होकर अदीन-परिणत-कोई पुरुष दीन होकर के भी दीनरूप से परिणत नहीं होता है। 3. अदीन होकर दीन-परिणत-कोई पुरुष दीन नहीं होकर के भी दोनरूप से परिणत होता है। 4. अदीन होकर अदीन-परिणत--कोई पुरुष न दीन है और न दीनरूप से परिणत होता है (165) / १९६–चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--दीणे णाममेगे दीणरूवे, (दीणे णममेगे अदीणरूवे, अदोणे णाममेगे दोणरूवे, प्रदोणे णाममेगे अदीणरूवे // 3 // पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे 1. दीन होकर दोनरूप--कोई पुरुष दीन है और दीनरूप वाला (दीनतासूचक मलीन वस्त्र आदि वाला) होता है। 2. दीन होकर अदीनरूप--कोई पुरुष दोन है, किन्तु दोनरूप वाला नहीं होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org