________________ चतुर्थ स्थान-द्वितीय उद्देश ] [ 261 पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. दीन और दीनसेवी-कोई पुरुष दीन है और दीनपुरुष (नायक--स्वामी) की सेवा करता है। 2. दीन और अदीनसेवी-कोई पुरुष दोन होकर अदीन पुरुष की सेवा करता है। 3. अदीन और दीनसेवी-कोई पुरुष अदीन होकर भी दीन पुरुष की सेवा करता है। 4. अदीन और अदीनसेवी-कोई पुरुष न दीन है और न दीन पुरुष की सेवा करता है (208) / २०६–एवं [चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-दीणे णाममेगे दोणपरियाए, दीणे णाममेगे प्रदीणपरियाए, अदीणे णाममेगे दीणपरियाए, प्रदीणे णाममेगे अदीणपरियाए। पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. दीन और दीनपर्याय-कोई पुरुष दीन है और दीन पर्याय (अवस्था) वाला होता है। 2. दीन और अदीनपर्याय—कोई पुरुष दीन होकर भी दीन पर्यायवाला नहीं होता है। 3. अदीन और दीनपर्याय-कोई पुरुष दीन न होकर दीन पर्यायवाला होता है। 4. अदीन और अदीनपर्याय-कोई पुरुष न दीन है और न दीन पर्यायवाला होता है (206) / २१०-चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-दोणे गाममेगे दीणपरियाले, दोणे णाममेगे प्रदीणपरियाले, अदीणे णाममेगे दीणपरियाले, प्रदोणे गाममेगे अदीणपरियाले ।[सव्वत्थ चउन्भंगो।] पुन: पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. दीन और दीन परिवार-कोई पुरुष दीन है और दीन परिवारवाला होता है / 2. दीन और अदीन परिवार-कोई पुरुष दोन होकर दीन परिवारवाला नहीं होता है। 3. अदीन और दीनपरिवार-कोई पुरुष दीन न होकर दीन परिवारवाला होता है 4. अदीन और अदीन परिवार-कोई पुरुष न दीन है और न दीन परिवारवाला होता है आर्य-अनार्य-सूत्र' २११-~-चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–अज्जे णाममेगे अज्जे, प्रज्जे णाममेगे अणज्जे, अणज्जे णाममेगे अज्जे, अणज्जे णाममेगे अणज्जे / एवं प्रज्जपरिणए, अज्जरूवे प्रज्जमणे अज्जसंकप्पे, प्रज्जपण्णे अज्जदिट्री अज्जसीलाचारे, अज्जववहारे, अज्जपरक्कमे अज्जपित्ती, अज्जजाती, अज्जभासी अज्जोवभासी, अज्जसेवी, एवं अज्जपरियाये प्रज्जपरियाले एवं सत्तरसस पालावगा जहा दीणेणं भणिया तहा अज्जेण वि भाणियन्वा / पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे 1. आर्य और आर्य-कोई पुरुष जाति से भी आर्य और गुण से भी आर्य होता है / 1. जिनमें धर्म-कर्म की उत्तम प्रवृत्ति हो, ऐसे आर्य देशोत्पन्न पुरुषों को आर्य कहते हैं। जिनमें धर्म आदि को प्रवृत्ति नहीं, ऐसे अनार्यदेशोत्पन्न पुरुषों को अनार्य कहते हैं। आर्य पुरुष क्षेत्र, जाति, कुल, कर्म शिल्प, भाषा ज्ञान, दर्शन और चारित्र की अपेक्षा नौ प्रकार के कहे गये हैं। इनसे विपरीत पुरुषों को अनार्य कहा गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org