________________ 238 ] [ स्थानाङ्गसूत्र 2. कोई पुरुष दूसरों से पूजा करवाता है, किन्तु स्वयं पूजा नहीं करता। 3. कोई पुरुष स्वयं भी पूजा करता है और दूसरों से भी पूजा करवाता है। 4. कोई पुरुष न स्वयं पूजा करता है और न दूसरों से पूजा करवाता है (115) / स्वाध्याय-सूत्र ११६-चत्तारि बुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-वाएइ गाममेगे गो बायावेइ, वायावेइ णाममेगे णो वाएइ, एगे वाएइ वि वायावेइ वि, एगे णो वाएइ णो वायावेइ। पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. कोई पुरुष दूसरों को वाचना देता है, किन्तु दूसरों से वाचना नहीं लेता। 2. कोई पुरुष दूसरों से वाचना लेता है, किन्तु दूसरों को वाचना नहीं देता। 3. कोई पुरुष दूसरों को वाचना देता है और दूसरों से वाचना लेता भी है। 4. कोई पुरुष न दूसरों को वाचना देता है और न दूसरों से वाचना लेता है (116) / ११७-चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-पडिच्छति णाममेगे णो पडिच्छाति, पडिच्छावेति णाममेगे णो पडिच्छति, एगे पडिच्छति वि पडिच्छावेति वि, एगे गो पडिच्छति णो पडिच्छावेति / पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं जैसे१. कोई पुरुष प्रतीच्छा (सूत्र और अर्थ का ग्रहण) करता है, किन्तु प्रतीच्छा करवाता नहीं 2. कोई पुरुष प्रतीच्छा करवाता है, किन्तु प्रतीच्छा करता नहीं है। 3. कोई पुरुष प्रतीच्छा करता भी है और प्रतीच्छा करवाता भी है। 4. कोई पुरुष प्रतीच्छा न करता है और न प्रतीच्छा करवाता है (117) / ११८-चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा--पुच्छई णाममेगे णो पुच्छावेइ, पुच्छावेइ णाममेगे णो पुच्छइ, एगे पुच्छइ वि पुच्छावेइ वि, एगे णो पुच्छइ णो पुच्छावेइ / पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे --- 1. कोई पुरुष प्रश्न करता है, किन्तु प्रश्न करवाता नहीं है। 2. कोई पुरुष प्रश्न करवाता है, किन्तु स्वयं प्रश्न करता नहीं है। 3. कोई पुरुष प्रश्न करता भी है और प्रश्न करवाता भी है। 4. कोई पुरुष न प्रश्न करता है न प्रश्न करवाता है (118) / ११६---चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–वागरेति णाममेगे णो वागरावेति, वागरावेति णाममेगे जो वागरेति, एगे वागरेति वि वागरावेति वि, एगे जो वागरेति णो वागराति] / पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं जैसे१. कोई पुरुष सूत्रादि का व्याख्यान करता है, किन्तु अन्य से व्याख्यान करवाता नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org