________________ चतुर्थ स्थान–प्रथम उद्देश ] [ 236 2. कोई पुरुष व्याख्यान करवाता है, किन्तु स्वयं व्याख्यान नहीं करता है। 3. कोई पुरुष स्वयं व्याख्यान करता है और अन्य से व्याख्यान करवाता भी है / 4. कोई पुरुष न स्वयं व्याख्यान करता है और न अन्य से व्याख्यान करवाता है (116) / १२०-चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सुत्तधरे णाममेगे जो प्रत्थधरे, अत्थधरे णाममेगे णो सुत्तधरे, एगे सुत्तधरे वि प्रत्थधरे वि, एगे णो सुत्तधरे णो प्रत्थधरे। पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं-जैसे१. कोई पुरुष सूत्रधर (सूत्र का ज्ञाता) होता है, किन्तु अर्थधर (अर्थ का ज्ञाता) नहीं होता। 2. कोई पुरुष अर्थधर होता है, किन्तु सूत्रधर नहीं होता / 3. कोई पुरुष सूत्रधर भी होता है और अर्थधर भी होता है। 4. कोई पुरुष न सूत्रधर होता है और न अर्थधर होता है (120) / ' लोकपाल-सूत्र १२१-चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो चत्तारि लोगपाला पण्णत्ता, तं जहा-सोमे, जमे, वरुण, वेसमणे। असुरकुमार-राज असुरेन्द्र चमर के चार लोकपाल कहे गये हैं। जैसे१. सोम, 2. यम, 3. वरुण, 4. वैश्रवण / (121) १२२-एवं-बलिस्सवि-सोमे, जमे, वेसमणे, वरुणे। धरणस्स-~-कालपाले, कोलपाले, सेलयाले, संखपाले। भूयाणंदस्स-कालपाले, कोलपाले, संखपाले, सेलपाले। बेणुदेवस्स-चित्ते, विचित्ते, चित्तपक्खे, विचित्तपक्खे। वेणदालिस्स-चित्ते, विचित्ते, विचित्तपक्खे, चित्तपक्खे / हरिकंतस्स-पभे, सुप्पमे, पभकते, सुप्पभकते। हरिस्सहस्स-पभे, सुप्पभे, सुप्पभकते, पभकते। अग्गिसिहस्स-तेऊ, तेउसिहे, ते उकते, तेउप्पभे। अग्गिमाणवस्स-तेऊ, तेउसिहे, तेउप्पमे, तेउकते। पुण्णस्स-रूवे, रूवंसे, रूवकते, रूवप्पमे। विसिट्ठस्स-रूवे, रूवंसे, रूवप्पभे रूवकते। जलकंतस्सजले, जलरते, जलकते, जलप्पमे / जलप्पहस्स-जले, जलरते, जलप्पहे, जलकते। अमितगतिस्सतुरियगती, खिप्पगतो, सोहगती, सोहविक्कमगतो। अमितवाहणस्स-तुरियगती, खिप्पगती, सोहविक्कमगतो, सोहगती। वलंबस्स-काले, महाकाले, अंजणे, रितु / पभंजणस्स-काले, महाकाले, रिटू, अंजणे। घोसस्स---प्रावते, वियावत्ते, गंदियावत्ते, महाणंदियावत्ते। महाघोसस्स-पावत्ते, वियावत्ते, महाणंदियावत्ते, शंदियावत्ते। सक्कस्स--सोमे, जमे, वरुणे, वेसमणे / ईसाणस्स-सोमे, जमे, वेसमणे, वरुणे / एवं-एगंतरिता जाव अच्चुतस्स / इसी प्रकार बलि आदि के भी चार-चार लोकपाल कहे गये हैं / जैसेबलि के-१.सोम, 2. यम, 3. वरुण, 4. वैश्रवण / धरण के-१. कालपाल, 2. कोलपाल, 3. सेलपाल, 4. शंखपाल / भूतानन्द के----१. कालपाल, 2. कोलपाल, 3. शंखपाल, 4. सेलपाल / वेणुदेव के-१. चित्र, 2. विचित्र, 3. चित्रपक्ष, 4. विचित्रपक्ष / वेण दालि के-१. चित्र, 2. विचित्र, 3. विचित्रपक्ष, 4. चित्रपक्ष / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org