________________ चतुर्थ स्थान-प्रथम उद्देश ] [237 में गुरु, तीसरे भंग में वृषभादि और चौथे भंग में जिन-कल्पी आदि / आगे भी इसी प्रकार यथायोग्य उदाहरण स्वयं समझ लेना चाहिए। ११२-[चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहावदति णाममेगे णो वंदावेति, वंदावेति णाममेगे णो बंदति, एगे बंदति वि वंदावेति वि, एगे णो वंदति णो वंदावेति / एवं सक्कारेइ, सम्माणेति पूएइ, वाएइ, पडिपुच्छति पुच्छइ, वागरेति / पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. कोई पुरुष (गुरुजनादि की) वन्दना करता है, किन्तु (दूसरों से) वन्दना करवाता नहीं / 2. कोई पुरुष (दूसरों से) वन्दना करवाता है, किन्तु (स्वयं) वन्दना नहीं करता। 3. कोई पुरुष स्वयं भी वन्दना करता है और दूसरों से भी वन्दना करवाता है। 4. कोई पुरुष न स्वयं वन्दना करता है और न दूसरों से वन्दना करवाता है (112) / ११३-[चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—सक्कारेइ णाममेगे णो सक्कारावेइ, सक्कारावेइ णाममेगे णो सक्कारेइ, एगे सक्कारेइ वि सकारावेइ वि, एगे णो सक्कारेइ णो सक्कारावेइ। पुन: पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे 1. कोई पुरुष (गुरुजनादि का) सत्कार करता है, किन्तु (दूसरों से) सत्कार करवाता नहीं। 2. कोई पुरुष दूसरों से सत्कार करवाता है, किन्तु स्वयं सत्कार नहीं करता। 3. कोई पुरुष स्वयं भी सत्कार करता है और दूसरों से भी सत्कार करवाता है। 4. कोई पुरुष न स्वयं सत्कार करता है और न दूसरों से सत्कार करवाता है (113) / ११४---चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–सम्माणेति णाममेगे णो सम्माणाति, सम्माणावेति पाममेगे णो सम्माति, एगे सम्माणेति वि सम्माणावेति वि, एगे णो सम्माणेति णो सम्माणावति। पुन: पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. कोई पुरुष (गुरुजनादि का) सन्मान करता है, किन्तु (दूसरों से) सन्मान नहीं करवाता / 2. कोई पुरुष दूसरों से सन्मान करवाता है, किन्तु स्वयं सन्मान नहीं करता। 3. कोई पुरुष स्वयं भी सन्मान करता है और दूसरों से भी सन्मान करवाता है। 4. कोई पुरुष न स्वयं सन्मान करता है और न दूसरों से सन्मान करवाता है (114) / ११५-चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-पूएइ णाममेगे णो पूयावेति, पूयाति णाममेगे णो पूएइ, एगे पूएइ वि पूयावेति वि, एगे णो पूएइ णो पूयावेति / पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. कोई पुरुष (गुरुजनादि की) पूजा करता है, किन्तु (दूसरों से) पूजा नहीं करवाता / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org