________________ चतुर्थ स्थान--प्रथम उद्देश ] [ 251 इसी प्रकार महाभीम की भी चार अग्रमहिषियां कही गई हैं (166) / 167 -किग्णरस्स णं किरदस्स [किण्णररणो] चत्तारि अगम हिसीनो पण्णत्तानो, तं जहा--वडेंसा, केतुमती, रतिसेणा, रतिप्पभा। किन्नरराज किन्नरेन्द्र किन्नर की चार अग्रमहिषियां कही गई हैं / जैसे१. अवतंसा, 2. केतुमती, 3. रतिसेना, 4. रतिप्रभा (167) / १६८--एवं किंपुरिसस्सवि। इसी प्रकार किंपुरुष की भी चार अग्नमहिषियां कही गई हैं (168) / 166 --सप्पुरिसस्स णं किंपुरिसिंदस्स [किंपुरिसरण्णो ?] चत्तारि अग्गम हिसीनो पण्णत्तानो, तं जहा--- रोहिणी, णवमिता, हिरी, पुष्फवती। किंपुरुषराज किंपुरुषेन्द्र सत्पुरुष की चार अग्रमहिषियां कही गई हैं / जैसे१. रोहिणी, 2. नवमिता, 3. ह्री, 4. पुष्पवती (166) / १७०-एवं महापुरिसस्सवि / इसी प्रकार महापुरुष की भी चार अनमहिषियां कही गई हैं (170) / 171-- प्रतिकायस्स णं महोरगिदस्स [महोरगरण्णो ? ] चत्तारि अग्गहिसीनो पण्णत्तानो, तं जहा--भुयगा, भुयगावती, महाकच्छा, फुडा / महोरगराज महोरगेन्द्र अतिकाय की चार अग्रमहिषियां कही गई हैं / जैसे१. भुजगा, 2. भुजगवती, 3. महाकक्षा, 4. स्फुटा (171) / १७२---एवं महाकायस्सवि / इसी प्रकार महाकाय की भी चार अग्रमहिषियां कही गई हैं (172) / 173-- गीतरतिस्स णं गंधविदस्स [गंधवरण्णो ?] चत्तारि अग्गमहिसीनो पण्णत्तानो, तं जहा-सुघोसा, विमला, सुस्सरा, सरस्सती। गन्धर्वराज गन्धर्वेन्द्र गीतरति की चार अग्रमहिषियां कही गई हैं, जैसे१. सुघोषा, 2. विमला, 3. सुस्वरा 4. सरस्वती (173) / १७४-एवं गोयजसस्सधि / इसी प्रकार गीतयश की भी चार अग्रमहिषियां कही गई हैं (174) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org