________________ 248 ] [ स्थानाङ्गसूत्र मृतक-सूत्र १४७-चत्तारि भयगा पण्णत्ता, तजहा--दिवसभयए, जत्ताभयए, उच्चत्तमयए, कब्बालभयए। भृतक (सेवक) चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. दिवस-भूतक-प्रतिदिन का नियत पारिश्रमिक लेकर कार्य करने वाला। 2. यात्रा-भृतक यात्रा (देशान्तरगमन) काल का सेवक-सहायक / 3. उच्चत्व-भृतक-नियत कार्य का ठेका लेकर कार्य करने वाला। 4. कब्बाड-भतक-नियत भूमि आदि खोदकर पारिश्रमिक लेने वाला / जैसे प्रोड आदि (147) / प्रतिसेवि-सूत्र १४०-चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-संपागडपडिसेवी णामेगे जो पच्छण्णपडिसेवी, पच्छण्णपडिसेवी णामेगे जो संपागड्पडिसेवी, एगे संपागडपडिसेवी वि पच्छण्णपडिसेवी वि, एगे णो संपागडपडिसेवी णो पच्छण्णपडिसेवो। दोष-प्रतिसेवी पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे--- 1. कोई पुरुष सम्प्रकट-प्रतिसेवी-प्रकट रूप से दोष सेवन करने वाला होता है, किन्तु प्रच्छन्न-प्रतिसेवी-गुप्त रूप से दोषसेवी नहीं होता। 2. कोई पुरुष प्रच्छन्न-प्रतिसेवी होता है, किन्तु सम्प्रकट-प्रतिसेवी नहीं होता। 3. कोई पुरुष सम्प्रकट-प्रतिसेवी भी होता है और प्रच्छन्न-प्रतिसेवी भी होता है। 4. कोई पुरुष न सम्प्रकट-प्रतिसेवी होता है और न प्रच्छन्न-प्रतिसेवी ही होता है (148) / अग्रमहिषी-सूत्र १४६-चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररणो सोमस्स महारण्णो चत्तारि प्रग्गमहिसोप्रो पण्णत्तानो, तं जहा-कणगा, कणगलता, चित्तगुत्ता, वसुधरा। असुरकुमारराज असुरेन्द्र चमर के लोकपाल सोम महाराज की चार अग्रमहिषियां कही गई हैं। जैसे 1. कनका, 2. कनकलता, 3. चित्रगुप्ता, 4. वसुन्धरा (146) / १५०–एवं जमस्स वरुणस्स वेसमणस्स। इसी प्रकार यम, वरुण और वैश्रवण लोकपालों की भी चार-चार अग्रमहिषियां कही गई हैं (150) / १५१-बलिस्स णं वइरोंयणिदस्स वइरोयणरण्णो सोमस्स महारण्णो चत्तारि अग्गमहिसीनो पण्णत्तामो, तं जहा–मितगा, सुभद्दा, विज्जुता, असणी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org