________________ 218 ] [ स्थानाङ्गसूत्र ५१-चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, त जहा–सुई णाम एगे सुइदिट्ठी, सुई णामं एगे असुइविट्ठी, असुई णाम एगे सुइदिट्ठी, असुई णाम एगे असुइदिट्ठी। पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे-- 1. कोई पुरुष शरीर से शुचि और शुचि दृष्टि वाला होता है / 2. कोई पुरुष शरीर से शुचि, किन्तु अशुचि दृष्टि वाला होता है। 3. कोई पुरुष शरीर से अशुचि, किन्तु शुचि दृष्टि वाला होता है। 4. कोई पुरुष शरीर से अशुचि और अशुचि दृष्टि वाला होता है (51) / ५२-चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तंजहा-सुई णामं एगे सुइसीलाचारे, सुई णाम एम असुइसोलाचारे, प्रसुई णामं एगे सुइसोलाचारे, असुई णाम एगे असुइसोलाचारे। पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. कोई पुरुष शरीर से शुचि और शुचि शील-प्राचार वाला होता है। 2. कोई पुरुष शरीर से शुचि, किन्तु अशुचि शील-आचार वाला होता है। 3. कोई पुरुष शरीर से अशुचि, किन्तु शुचि शील-प्राचार वाला होता है। 4. कोई पुरुष शरीर से अशुचि और अशुचि शील-प्राचार वाला होता है (52) / ५३--चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, त' जहा-सुई णामं सुइववहारे, सुई णामं एगे असुइववहारे, असुई णामं एगे सुइववहारे, असुई णामं एगे असुइववहारे / पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. कोई पुरुष शरीर से शुचि और शुचि व्यवहार वाला होता है / 2. कोई पुरुष शरीर से शुचि, किन्तु अशुचि व्यवहार वाला होता है। 3. कोई पुरुष शरीर से अशुचि, किन्तु शुचि व्यवहार वाला होता है। 4. कोई पुरुष शरीर से अशुचि और अशुचि व्यवहार वाला होता है (53) / 54-- चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, त जहा-सुई णामं एगे सुइपरक्कमे, सुई णाम एगे असुइपरक्कमे, असुई णाम एगे सुइपरक्कमे, असुई णाम एगे असुइपरक्कमे] / पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. कोई पुरुष शरीर से शुचि और शुचि पराक्रमवाला होता है। 2. कोई पुरुष शरीर से शुचि, किन्तु अशुचि पराक्रमवाला होता है / 3. कोई पुरुष शरीर से अशुचि, किन्तु शुचि पराक्रमवाला होता है / 4. कोई पुरुष शरीर से अशुचि और अशुचि पराक्रमवाला होता / (54) कोरक-सूत्र ५५–चत्तारि कोरवा पण्णत्ता, त जहा-अंबपलबकोरवे, तालपलबकोरवे, वल्लिपलबकोरवे, मेंदविसाणकोरवे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org