________________ 178 ] [ स्थानाङ्गसूत्र जम्बुप्रीपनामक द्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण में क्षुल्ल हिमवान् वर्षधर पर्वत के पद्मद्रह नामक महाद्रह से तीन महानदियाँ प्रवाहित होती हैं-गंगा, सिन्धु और रोहितांशा (457) / ४५८-जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं सिहरीओ वासहरपक्वताप्रो पोंडरीयबहानी महादहानो तो महाणदीनो पवहंति, त जहा--सुवण्णकला, रत्ता, रत्तवती। जम्बूद्वीपनामक द्वीप में मन्दर पर्वत के उत्तर में शिखरी वर्षधर पर्वत के पुण्डरीक महाद्रह से तीन महानदियाँ प्रवाहित होती हैं-सुवर्णकूला, रक्ता और रक्तवती (458) / ४५६-जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पध्वयस्स पुरस्थिमे णं सीताए महाणदीए उत्तरे णं तओ अंतरणदीनो पण्णत्ताओ, त जहा—गाहावती. दहवती, पंकवती। __ जम्बूद्वीपनामक द्वीप में मन्दर पर्वत के पूर्वभाग में सीता महानदी के उत्तर भाग में तीन अन्तर्नदियाँ कही गई हैं-ग्राहवती, द्रहवती और पंकवती (456) / ४६०---जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमे णं सीताए महाणदीए दाहिणे णं तो अंतरणदीनो पण्णत्तामो, त जहा-तत्तजला, मत्तजला, उम्मत्तजला। जम्बूद्वीपनामक द्वीप में मन्दर पर्वत के पूर्व भाग में सीता महानदी के दक्षिण भाग में तीन अन्तर्नदियाँ कही गई हैं- तप्तजला, भत्तजला और उन्मत्तजला (460) / ४६१-जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सीतोदाए महाणदीए दाहिणे णं तम्रो अंतरणदीग्रो पण्णत्ताप्रो, तं जहा-खीरोदा, सीहसोता, अंतोवाहिणी। जम्बद्वीपनामक द्वीप में मन्दर पर्वत के पश्चिम में सीतोदा महानदी के उत्तर भाग में तीन अन्तर्न दियाँ कही गई हैं—क्षीरोदा, सिंहस्रोता और अन्तर्वाहिनी (461) / ४६२-जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सीतोदाए महाणदीए उत्तरे थे तो अंतरणदोश्रो पण्णत्ताओ, तं जहा-उम्मिमालिणी, फेणमालिनी, गंभीरमालिणी। धातकीपंड-पुष्करवर-सूत्र ___ जम्बूद्वीपनामक द्वीप में मन्दर पर्वत के पश्चिम में सीतोदा महानदी के दक्षिण भाग में तीन अन्तर्नदियाँ कही गई हैं--मिमालिनी, फेनमालिनी और गम्भीरमालिनी (462) / ४६३--एवं-धायइसंडे दीवे पुरथिमद्धवि अकम्मभूमीग्रो प्राढवेत्ता जाव अंतरणदीप्रोत्ति णिरवसेसं भाणियन्वं जाव पुक्खरवरदीवड्डपच्चस्थिमद्ध तहेव गिरवसेसं भाणियत्वं / इसी प्रकार धातकीषण्ड तथा अर्धपुष्करवरद्वीप के पूर्वार्ध और पश्चिमार्ध में जम्बूद्वीप के समान तीन-तीन अकर्मभूमियाँ तथा अन्तर्नदियां आदि समस्त पद कहना चाहिए (463) / भूकंप-सूत्र ४६४---तिहि ठाणेहिं देसे पुढवीए चलेज्जा, तं जहा-- 1. अहे णं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उराला पोग्गला णिवतेज्जा। तते णं उराला पोग्गला णिवतमाणा देसं पुढवीए चालेज्जा / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org